रविवार, 9 अगस्त 2015

कौन स्वतन्त्र हैं?

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आखिर कौन आजाद यहां?
          जो स्वतंत्र दिवस मनाते हैं।
दिखता सत्य सबको मगर,
          यूं ही क्यों दिल बहलाते है।

न स्वतंत्र वह अजन्मी बच्ची,
         इस भव सागर में आने को।
आ भी गयी तो क्या सहीं?
       तकते दरिंदे,उन्हें मिटाने को।

क्या स्वतंत्र हर घर की बेटी?
             उंची शिक्षा को पाने को।
कितने बैठे दुश्मन देख लो,
           सक्रिय है इन्हें सताने को।

आजाद नही है नेंक जवान,
          अपनी विचार फैलाने को।
सच बोले झुठ लगता है,
         खुद झुठी,इस जमाने को।

आम जनता,गुलाम नेता का,
         क्या मनमर्जी कर पाता है?
उगाता खुद ही अन्न मगर,
          नेता दे,तब ही खाता है।

कितनी और झुठी तसल्ली?
               देते रहेंगे दिल को हम।
अच्छा होता गर होता ऐसा,
        खुद स्वतन्त्र हो,रखता दम।
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काॅपीराईट@श्रवण साहू
पता-बरगा,थानखम्हरिया
मोबाइल-08085104647
दिनांक- 10-09-2015

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