बुधवार, 23 सितंबर 2015

कलयुग की कायदा

   कलयुग की कायदा
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"कलयुग शहर के
          स्वार्थ नगर में"
   "अन्याय गली के
              चौंथी तली में"
     "रहना सम्हल के
            अगम दलदल में"
       "उड़ते जब परिन्दे
             तकते कई दरिन्दें"
         " उजाड़ते आशियाना
                 लूट भी लेते खाना"
               "चुप रहना भी सिख
                   किसी को ना दिख"
                 "ये कलयुग की नीति
                    साथ रखना यह रीति।"

रचना-श्रवण साहू
गांव-बरगा जि-बेमेतरा (छ.ग.)
मोबा. +918085104647
                
          
            

मंगलवार, 22 सितंबर 2015

श्रवण साहू

आज मन में बहुत ही खुशी हैं गुरूवर ईश्वर लाल साहू जी की कृपा से आज18-09-2015 को राष्ट्रीय कवि संगम मुक्ताकाशी के सान्निध्य में संस्कृति विभाग रायपूर के मंच पर वरिष्ठ कवियों के सान्निध्य में कविता पाठ करने का मौका मिला।  मैं गुरजी को कोटि-कोटि प्रणाम ज्ञापित करता हूं। 
                          -  श्रवण साहू

सोमवार, 21 सितंबर 2015

तीजा-पोरा तिहार

तीजा पोरा तिहार धीरे धीरे लकठियावत हे,
बहुरिया ले जादा मोर नतनीन हा सतावत हे।
कब आही दाई ममा हा,कब आही दाई ममा हा?
बिहनिया ले संझा, बस ईही गिना गावत हे।
संग मा पारले बिसकुट अऊ सेव केरा लाही,
दिनभर चिल्लाके हमरो मन ला ललचावत हे।
फटफटी के आगु मा बईठ के पिपीप मैं बजांहू,
रहि रहि के अपन महतारी ला जोजियावत हे।
रनिया संग घरबुंदिया बांके संग खेलबो बांटी,
कब के देखे भाई बहिनी ला बने सोरियावत हे।
बड़े ममा  घर जुरमिल जाके शक्तिमान देखबो,
अपने अपन गोठियाके  भारी बेलबेलावत हे।
छोटे ममा के कनबुच्ची खेलई ला सुरता करके,
अब मने मन नतनीन हा मोर कईसे डर्रावत हे।
छोटे ममा के सुरता करके नई जावंव ममा घर,
रोना चालू अऊ अपन महतारी ला मनावत हे।
छोटे ममा ला चेताबे मोर तीर मा झन आही,
अब मया मा महतारी, बेटी ला समझावत हे।
नई खिसयावय ममा हा तैं संसो झन कर, 
तरिया नरवाकुत झन जाबे महतारी बतावत हे।
ठंऊका बेरा मा ममा  आगे मिलगे ओकर आरो,
खुशी मा मोर नतनीन ममा ला देख लजावत हे।
तीजा पोरा तिहार धीरे धीरे लकठियावत हे,
बहुरिया ले जादा मोर नतनीन हा लुकलुकावत हे।
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रचना-श्रवण साहू
गांव-बरगा जि-बेमेतरा

बुधवार, 16 सितंबर 2015

गज़ल - श्रवण साहू

नज़र क्या पड़ी कागज़ पे,
              सोंचा कुछ खास़ लिख दूँ।
मेरे सनम् तूझे सुलताना,
            खुद को तेरा दास लिख दूँ।
ऋतु बसन्ती के वियोग में,
          पतझड़ सी लिबास़ लिख दूँ।
पल-पल,छण-छण बिताया,
          वो हर लम्हा उदास लिख दूँ।
तड़पता मैं बिन तेरे प्रियतमा,
        खुद को जिन्दा लास लिख दूँ।
कलम की टुकड़ा मैं मिट्टी की,
        तूझे आज़ाद आगास लिख दूँ।
मैं-तेरी तुम-मेरी ऐ-सनम्,
     बस इतना सा विश्वास लिख दूँ।
              
           रचना-श्रवण साहू
     गांव-बरगा जि.-बेमेतरा (छ.ग.)
       मोबा.- +918085104647
       

शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

मातृभाषा हिन्दी - कुंडलियॉ

                 ।। कुंडलियॉ ।।
****************१****************
सोहे मस्तक जगमग ,भारत माँ की बिन्दी
अनुपम अलौकिक सुगम,राष्ट्र भाषा हिन्दी।
राष्ट्र भाषा हिन्दी, भारत की अमिट शान,
मुस्लिम सिक्ख ईशाई, हंसतें करते गान।
देववाणी-संस्कृत तनुजा,मन सबकी मोहे,
काव्य-सागर-अलंकार, मोती सरिस सोहे।
***************२******************
वर्ण-वर्ण प्रति वर्ण में, हैं अद्वितीय सी भेद,
पुराण, शास्त्र,महाकाव्य, देवनागरी से वेद।
देवनागरी से वेद, सुनत भवपार लग जाये,
नेति-नेति कह धर्मानुरागी,गुण सर्वदा गाये।
मातृभाषा गुणगान सुन तृप्त भये मम कर्ण,
सुमधुर अपरिवर्तनीय, हिन्दी की हर वर्ण।
***************३******************
तन से हम स्वतंत्र भले,वचन बन्धता खाय,
अंग्रेज़ी पराधीन बन्दे, हिन्दी बोलत लजाय।
हिन्दी बोलत लजाय,बन गये शत्रु के दास,
साहब बन गये भले, मानव बने नहि खास।
मुख से अंग्रेजी सबके,'श्रवण' कर रोये मन,
पढ़त सुनत हिन्दी जबहि,नाचत सबकै तन।
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रचना-श्रवण साहू
गांव-बरगा जि-बेमेतरा (छ.ग.)
मोबा.+918085104647

शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

गज़ल - श्रवण साहू की कलम से

                   गज़ल

सूखे पड़ते धरातल कराते यह आभास हैं,
दुखिया धरनी भी दीर्घकालीन उपवास हैं।

पापों के बोझ सें सिसकती भुमि भारत,
खिलखिलाती मन आज कितना उदास हैं।

ये क्या? तज कर अपनें रंगीन वस्त्रों कों,
भक्तिमय जोगन सी इनकी लिबास हैं।

  आस्था विभोर मन पुकार रही नित,
आयेंगे जगदीश अवश्य यही विश्वास हैं।

आयें कोई अवतार लेके कृष्ण राम जैसे,
जन्में तुलसी नानक बस यही आस हैं।
  
           रचना - श्रवण साहू
   गांव-बरगा,जि.-बेमेतरा (छ.ग.)


गुरुवार, 3 सितंबर 2015

जन्माष्टमी कविता - by/ shravan sahu

    जन्माष्टमी प्रार्थना
                 
दुनिया के पाप मिटाय बर,
  तैं अऊ आजा पापहारी।
दूखिया के दुख हटाय बर,
  तैं अऊ आजा बनवारी।

कलपत हे तोर गौ माता हा,
  नईहे कोनो हा सुनईया।
परिया घलो ला मनखे खागे,
गईया बर नईहे गुनईया।
सुरहिन ला बंशी सुनाय बर,
  तैं अऊ आजा बंशीधारी।

जन्मे कतेक दुर्योधन दुशासन
   दुरपति के चिर हरईया।
रोवत बिलखत हे नारी बिचारी
  आंसु के नईहे पोंछईया।
अबला के लाज बचाय बर,
   तैं अऊ आजा दुखहारी।

भ्रष्टाचार बदरा बन बरसत अऊ
  महंगाई के गरेरा छावत हे।
ब्राम्हण गोप ग्वाल जम्मो झन
भारी दुख ला अब पावत हे।
बिपदा मा गोवर्धन उठाय बर,
   तैं अऊ आजा गिरधारी।

अत्याचारी कालिया नाग बने,
नर नारी ला आज सतावत हे।
साधु सज्जन ला विपत परगे,
  जेन तोरे गुन ला गावत हे।
  संताप के दही चोराय बर,
    तै अऊ आजा कन्हाई।

               रचना
            श्रवण साहू
    गांव-बरगा,जि.-बेमेतरा

श्रवण साहू का छत्तीसगढ़ गज़ल

मैं कोन ला बतांव, मैं कोन डाहर जांव।

जबले परे हे भुईयां मा भ्रष्टाचार के पांव।
हार खागे मनखे, अऊ लुटगे गांव-गांव।
                            मैं कोन ला बतांव.......
सिधवा गरूवा मनखे के,नईहे गा ईंहा ठांव,
तपय घाम मा बपरा,कपटी रेंगे छांव-छांव।
                            मैं कोन ला बतांव......
जेन हमर रखवाला हे उही हा देवय घाव,
हमरे पोंसे शेरू करे हमरे बर हांव-हांव।
                            मैं कोन ला बतांव......
अऊ कतेक होही जी दुनिया मा अनियाव,
सपटत फिरत हे धर्मी,शकुनी के चलय दांव।
                           मैं कोन ला बतांव......
जान लौ पहिचान लौ ,मन मा बिचार लाव,
मान लौ ठान लौ अऊ सरि दुनिया ला जगाव।
                         मान लौ ठान लौ अऊ.....

रचना- श्रवण साहू
गांव - बरगा जि.-बेमेतरा (छ.ग.)
मोबा.- +918085104647

कलयुग के साधु - श्रवण साहू

.          कलयुग के साधु              .

पिंवरा-पिंवरा के कुरता पहीरे,
                 माथा मा चंदन लगाय हे।
राख-राख के अंग मा बिभूति,
              गर मा रूद्राक्ष ओरमाय हे।
रग-रग ले कान मा  कुण्डल,
               चुँदी ला भारी बढ़हाय हे।
दग-दग ले लकड़ी मा आगी,
            बीच खोर मा धुनी रमाय हे।
बम-बम बोलके धुंआ उड़ावत,
             गांजा ला परसाद बनाय हे।
गांव-गांव मा किंजरय बाबा,
           कईसन जी अलख जगाय हे।
गली-गली मा घुमत फिरत,
             मन ला सबो के भरमाय हे।
नर-नारी सब सेवा बजावय,
            ढोंगी के चक्कर मा आय हे।
जन-जन परखौ बहुरूपिया ला
           जेन खुद ला साधु बताय हे।
सोंच-समझ के दान करहू,
            ठग  ढोंगिया बहुते छाय हे।

रचना-श्रवण साहू
गांव - बरगा जि.-बेमेतरा
मोबा. - 8085104647

बुधवार, 2 सितंबर 2015

लकड़ी के कठवा - श्रवण साहू

सबके मन ला मोहत हे आज गोल्ड,
आनी बानी के भाखा मा करथे टोल्ड,
पानी नई सुहावय बिना करे कोल्ड,
जुन्ना मा मन नई लागय सुहाथे सोल्ड,
जम्मो संस्कृति ला कर डारिन ओल्ड,
जादा झन इंतरा रे लकड़ी के कठवा
एक दिन होये बर परही क्लीन बोल्ड।

    - श्रवण साहू

कब होही छत्तीसगढ़ मा सोनहा बिहान - श्रवण साहू

कब होही छत्तीसगढ़ मा सोनहा बिहान?

जागही जम्मो छत्तीसगढ़िया बेटा,
सोंच  समझ के  करही जब नेता,
नई चलही परदेशिया के सियानी,
पलट जही छत्तीसगढ़ के कहानी,
सबो नँघरिया दुलरवा मा होही गियान।
तब होही छत्तीसगढ़ मा सोनहा बिहान।

पुस्तक संग मा संस्कृति ला पढ़ही,
अपन रद्दा ला जब अपने हा गढ़ही,
अपनेच बोली  भाखा  ला समझही,
सबो संगी छत्तीसगढ़ी मा गरजही,
छत्तीसगढ़ी बोले मा नई परही जियान।
तब होही छत्तीसगढ़ मा सोनहा बिहान।

सुनता के रद्दा मा जुरमिल चलही,
भ्रष्टाचार के तभे बदरा हा टलही,
बेटी नारी  के करही सब हियाव,
सब बर होही जब बरोबर नियाव,
परोसी के परोसी हा बनजाही मितान।
तब होही छत्तीसगढ़ मा सोनहा बिहान।

रचना- श्रवण साहू
गांव - बरगा,जि.-बेमेतरा
मोबा.+918085104647

अरि सखी - श्रवण साहू

.              अरि सखी!

करती ठिठोली मिल सब सहेलियाँ,
अरि सखी! अब तो बुझो पहेंलियाँ।

शर्माना छोड़ पगली सीधी तु बता,
तरूणमयी! तुझे रहा  कौन सता,
किसकी तूम  बन बैठी सजनियाँ।
                              अरि सखी!......
नजरों में झुलते शायद तेरे वें कुंवर,
शांत हो तु लगाती ध्यान हर प्रहर,
नाम अब सुझा,न कर अठखेलियाँ।
                             अरि सखी!......
किसकी कान्ता प्रियसी वल्लभा,
लावण्यमयी!किसकी तू सुलभा,
सांवरी कौन हैं तेरी सांवरियाँ।
                               अरि सखी!.....
कौन तुम्हारे प्रियवर हे रमनी,
किसकी तुम रागिनी प्रणयिनी,
बता भी दे किसकी तू जोगनियाँ
                                   अरि सखी!....

रचना - श्रवण साहू
गांव-बरगा जि.-बेमेतरा
मोबा.-+918085104647

कुसंगत के फल कहानी - श्रवण साहू

।।छत्तीसगढ़ी कहानी - कुसंगत के फल।।
                              लेखक- श्रवण साहू

छत्तीसगढ़ के  पावन धरती मा भरतपूर नांव के एकठन गांव राहय। भरतपूर गांव मा रामस्वरूप नांव के ब्राम्हण रहय।रामस्वरूप के पत्नी यमुना बाई अऊ दू झन बेटा रहीस बड़े बेटा के नांव देवेन्द्र जेन 11 बछर के होगे हे अऊ दिखे मा बड़ सुघ्घर गोरा नारा हे अऊ ओकर ले सुघ्घर रामस्वरूप के छोटे बेटा सुरेन्द्र जेन अभी 9 बछर के होगे हे। रामस्वरूप के जईसन नांव हे वईसने ओकर गुन घलो रहय, रामस्वरूप बड़ संतोषी ब्राह्मण रहे,  गांव मा यजमानी, कथा हवन पूजन प्रवचन आदि करय अउ अपन परिवार के पालन पोषण करय अऊ लईका मन ला पढ़हावय।  रामस्वरूप अऊ यमुना के सपना रहय कि बड़े बेटा देवेन्द्र गांव मा यजमानी करय, प्रवचन करय, वेदपाठी होवय अऊ दूनो के दुलरवा बेटा सुरेन्द्र हा डाॅकटर बनय। समय के जावत देरी नई  हे संगवारी रामस्वरूप के वृध्दावस्था आगे,देवेन्द्र अऊ सुरेन्द्र अब जवान होगे, देवेन्द्र कुमार 12वीं तक पढ़िस अऊ अब पूजा पाठ करे मा निपूण होगे पिताजी के आशिष ले मंत्रोच्चारण के गुन घलो पागे अऊ सुघ्घर गांव के यजमानी करे लागीस अऊ अपन संगवारी बनालिस वोहा परमात्मा ला, धर्म शास्त्र ला, वेद पाठ ला,सत्संग ला।छोटे बेटा सुरेन्द्र घलो अपन दाई ददा के सपना पूरा करे खातिर, लक्ष मा धियान लगाय,उंचा पढ़ई बर डाॅक्टरी कालेज रायपूर चल दिस। देवेन्द्र तो अब हरि संग प्रेम लगा के अपन गियान ला गांव-गांव मा बांटे बर धरलिस, हव संगवारी  देवेन्द्र अपन लगन ले आज भगवती पण्डित बनगे, जतका मुद्रा दक्षिणा मा पावय ओकर पौना भाग ला अपन पास गृहस्थ चलाय बर रखय अऊ बाकि सबो पईसा ला अपन छोटे भाई के पढ़ाई बर रायपूर भेज देवय। ऐती सुरेन्द्र बिन मेहनत के पईसा पा-पा के बिगड़त जात हे।  कहे घलो के हे संगवारी बिन मेहनत के पाये हिरा बर घलो पिरिया कम रहिथे। मानव कंहू सत्संग नई करही ता कुसंगति मा जरूर परही।वईसने हाल आज सुरेन्द्र के होगे हे संगवारी,शहर के बिगड़े नवाब संग मितानी होगे हे रोज के गुंडा बदमासी करई, संगवारी मन संग होटल मा खवई होगे रहय, अब तो सुरेन्द्र "बढ़ स्वतंत्र सिर पर नहिं कोई" होगे।  सुरेन्द्र कुसंगत मा पढ़ के अपन कुल, मर्यादा, नियम ला भुलागे अपन लक्ष ला भुलागे।
बड़े भैया के मेहनत के पईसा ला कुसंगत मा परके मदिरा पान अवारापन मा उड़ाय लगिस अउ अपन भविष्य के रस्ता ला भुलागे।अईसन ऐसो आराम हा अल्पकालिक रथे,आखिर वो समे आगे जेन सुरेन्द्र के कुकर्म के फल देने वाला हे।सुरेन्द्र के परीक्षा परिणाम आगे, रात दिन कुसंगत मा परे रहने वाला सुरेन्द्र आज सबो बिषय मा फैल होगे हे, सुरेन्द्र अपन जिनगी ला बेकार तो करिडर राहय अब सुरेन्द्र सोच मा परगे कि मै दुराचारी हव अपन भैया के मेहनत के लाखो पईसा ला भोग विलासिता मा लगावत गेंव,झुठ बोल बोल के पईसा मांगत गेंव अऊ अपन परिजन ला धोखा देवत गेंव, सुरेन्द्र के मन मा अपन आप बर ग्लानि के भाव उठे लागिस अऊ वोहा सोचिंस अईसन पापीं जीव ला जिये के कोनो हक नईहे कहिके आत्मा हत्या करेबर सोचत रहिथे।उही बेरा देवेन्द्र हा सुरेंद्र ला देखे गजब दिन होय हे कहिके अपन छोटे भाई ला देखे बर पहूंचजथे।सुरेन्द्र किराया के कुरिया मा रहय। उंहा पहूंचते ही देवेन्द्र का देखथे?  सुरेन्द्र अपन घेंच मा फांसी अरोवत रहय, अईसन स्थिति ला देख देवेंद्र तुरते सुरेन्द्र के हाथ ले रस्सी ला झटक के कारण पुछथे।सुरेन्द्र हा पश्चाताप के आगी मा जरत, रोवत रोवत पूरा किस्सा ला देवेन्द्र ला बताथे।देवेन्द्र तो आत्मज्ञानी अऊ भगवती पंडित रहय संगवारी। सुरेन्द्र के मन मा अईसे ज्ञान डारथे अऊ समझाथे जेकर ले सुरेन्द्र घलो चेत जथे। अब तो देवेंद्र हा हर पूजा-पाठ मा सुरेन्द्र ला संग मा लेगय अऊ वहू हा सिखे खातिर अपन भैया संग हांसी खुशी जाय। अऊ आनन्दमय अपन जीवन ला बिताय लागिस।
             ।। जय जोहार जय छत्तीसगढ़ ।।

   ✏श्रवण साहू
गांव-बरगा जि.-बेमेतरा
मोबा.-8085104647

मंगलवार, 1 सितंबर 2015

हे मनुज - श्रवण साहू

           हे मनुज!
                      - श्रवण साहू

हे ब्रह्म वंशज! देवतूल्य तूम्ही,
             अशोभनीय समा बैठा गुण,
छोड़ दियो पुरुषार्थ का मार्ग,
              बन गया किंकर्तव्यविमुढ़।

उदासीनता कर शीघ्र त्याग, 
                प्रसन्नचित्त हो,कर कर्म,
राग,द्वेष,काम,क्रोध छोड़,
          जीवश्रेष्ठ निभा मानवता धर्म।

मलहीन निश्चिंत निर्मल हंस,
              कब हुआ तू घोंघाबसन्त,
न फंस मोह माया प्रपंच में,
                 अब बनता जा अरिहन्त।

                  ...६९...

छत्तीसगढ़ के बोली भाखा- श्रवण साहू

।।महतारी के बोली भाखा।।

....मोर छत्तीसगढ़ीन दाई के
मीठ मंदरस कस बोली हे....²

हरियर ईंहा धनहा डोली हे,
भरे नरवा तरिया बौली हे,
रोज तिहार जस होली हे,
अऊ गीत गावत कोयली हे,
             मोर छत्तीसगढ़ीन दाई...

जिंहा पनिहारिन के टोली हे,
नारी परानि बड़ भोली हे,
करे हांसी अउ ठिठोली हे,
फेर झार बंदुक कस गोली हे
            मोर छत्तीसगढ़ीन दाई...

भले नान नान ईंहा खोली हे,
फेर बसे बम्लाई माँ मौली हे,
जेन भरे सबके झोली हे,
माटी हा जिंहा के रोली हे,
            मोर छत्तीसगढ़ीन दाई...

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***जय छत्तीसगढ़ महतारी***
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रचना- श्रवण साहू
गांव-बरगा जि-बेमेतरा (छ.ग.)
मोबा.- +918085104647

छत्तीसगढ़ी कहानी (बेजुबान) - श्रवण साहू

                 बेजुबान
                             लेखक- श्रवण साहू
                
तीजा पोरा के सुघ्घर मनभावन परब रहीस, फुफु दीदी, पूर्णिमा बहिनी, रुखमनी दीदी, उत्तरा दीदी सबो झन के आये ले घर हा भरे भरे लगत रहीस।  रोज के दीदी मन के संग मा तिरी पासा,सांप सीढ़ी,बिल्लस अऊ गोंटा खेलई हा तो  हमर सबो झन के दिनचर्या बनगे रहीस अऊ अईसनहा समे हा साल के सबले सुखद दिन रहिस।शेरु हा तो मोर नान्हे-नान्हे भांचा भांची नमन अऊ शिखा के सबले बड़े संगवारी बनगे रहिस,वो मन हमन ला तो भाबे नई करय,  लागे रहय शेरू ला खेलई मा।  शेरु अऊ कोनो नई बल्कि  हमर पोंसे कुतिया बबली के लईका हरय। हमर डोकरी दाई के छोड़ सब झन वोला मया करय। शेरू ला सब झन नान्हे लईका सरिक मया करय अऊ सेरू तको हा अपन नियम कायदा मा राहय अऊ अपन सीमा  अंगना ले परछी मा घलो नई चढ़त रहिस।
                                     एकदिन मंझनिया कन फुफु दीदी भर घर मा राहय अऊ लईका सियान जम्मो झन नरवा मा नहाय बर चलदे रहय,  मैं हा बियारा मा लकड़ी चिरत रहेंव अचानक मोला सेरू के भूंके के आवाज आईस थोरकुन देर बाद मा ओकर रोय के आवाज आईस मैं लकर धकर दौंड़त घर गेंव,  सेरु हा अंगना मा डलगे रहीस अऊ फुफु दीदी डंडा मा सेरू ला पिटत रहय,चाह के भी मोर मुंह ले भाखा नई निकलत रहय काबर कि मोर फुफु दीदी थोरकिन बात मा रिसाजथे अऊ दू चार ठन सुना के घर ले भाग जथे। ठऊका बेरा मा सबो झन नहाके घलो आगे अऊ उत्तरा दीदी हा फुफु दीदी के हाथ ले डंडा ला झटक के गुस्साये स्वर मा पूछिस- " का होगे दीदी सेरू हा का गलती करे हे?  तेमा ओला निरदयी बरोबर मारत हस।"
फुफु दीदी-" उत्तरा तैं कुछु बात ला नई जानस कले चुप राहा"
उत्तरा दीदी-"ता का होगे बताबे तभे तो जानबो वो।"
फुफु दीदी-"ये सरवन टूरा ला पूछ ना का होगे तेला"
  (उत्तरा दीदी हा लाल आंखी ले मोर डाहर देखिस)
मैं -"मै कुछू बात ला नई जानव दीदी मैहा बियारा मा लकड़ी चिरत रहेंव ता सेरु के आवाज सुनेव ता दौरत आयेंव ता दीदी हा सेरू ला पिटत रहीस,(अतके कहिके मैं चुप होगेंव।)
फुफु- " मैं हा माई कुरिया मा बईठके चाउंर निमेरत रहेंव ता अचानक देखेंव ये सेरु हा भुंकत भुंकत परछी मा चढ़गे रहिस ता मैं येला येकर गलती के सजा देहंव।
(अतका ला सुन के सब झन चुप होगे, उत्तरा दीदी कपड़ा ला सुखोय बर धर लिस, फुफु हा चांउर निमेरे बर धरलिस महू बियारा जात रहेंव फेर मोर मन माढ़त नई रहिस मैं पूर्णिमा ले एक गिलास पानी मांगेव।
                पूर्णिमा जईसे ही रंधनी खोली मा गिस जोर से चिल्लाईस।सबो झन के नजर रंधनी खोली डाहर होगे ऊंहा ले एकठन बिलई निकलिस जेन हा सब भात,  दुध,  रोटी मन ला चट कर डारे राहय अऊ बचत ला गिरा दे राहय। ईही बिलई ला भगाय अऊ जनाय बर सेरू हा परछी मा चढ़े रहीस।
                                ( सबो झन हा गुस्सा के भाव ले फुफु दीदी ला देखत रहीस,  अऊ फुफु दीदी के नजर हा घलो झुकगे रहिस अऊ ऊहू ला अपन गलती के अहसास होगे रहिस अब फुफु तको हा सेरू ले मया करे लागिस।)
              ओखर बिहान दिन संझौती बेरा रूखमनी दीदी, पूर्णिमा बहिनी अऊ डोकरी दाई तीनो झन कोठार बरबट्टी अऊ भाजी टोरे बर जात रहीस उंकर संग मा जाय बर नान्हे-नान्हे नमन अऊ शिखा घलो रोय बर धरलिस, हार खाके डोकरी दाई दूनो झन ला दोनो झन ला दूनो हाथ मा पा लिस, उंकर पाछु-पाछु सेरू तको हा कोठार चल दिस। कोठार मा कांदी कचरा के मारे रद्-बद् लागत रहिस  दूनो झन लईका मन ला डोकरी दाई हा रूंख के नीचे मा बईठार के चेतईस - " कोठार मा रद्-बद् के मारे किरा मकोरा होही  तुमन ये मेर ले टरहू झन। लईका मन ला चेताय के बाद मा तीनो झन बरबट्टी टोरे बर धर लिस।
                                   थोरिक बाद नमन के आंखी मा एक ठन फांफा दिख गे वोहा ओला पकड़े खातिर कांदी के बीच रद्-बद मा खुसर जथे वोकर पाछु सेरू तको चल देथे फांफा तो उड़ा जथे फेर ये का?  नमन के पांव मा डोमी सांप के पूछी हा खुंदा जथे,  सांप हा गुस्साके फन कांड़ लेथे अउ अबक-तबक नमन ला काटने वाला रहिथे तईसे मा सेरू हा सांप अऊ नमन के बीच मा आके सांप के मुड़ीच ला अपन मुंह मा दबा के सांप ला मार डरथे अऊ भुंके बर धर लेथे सबो झन हा सेरू मेर आके सकला जथे रूखमनी हा धरा-रपटा नमन ला उठाथे।  सेरू के मुंह मा सांप ला देखके सब झन अकबका जथे। अचानक सेरू हा भुंईया मा घोलंड जथे अऊ रोय बर धर लेथे।  पूर्णिमा हा दौड़त मोला बताय खातिर घर आईस, महूं हा बात ला सुनत साट दौंड़त कोठार गेंव, जाके देखेंव ता  डोकरी दाई अऊ रुखमनी दीदी दूनो झन के आंखी ले आंसू के धार बोहावत हे, सेरू हा मुरछा खाय धरती मा परे हे ओकर मुंह मा खुन हे वोकर जीभ मा सांप दंश के चिनहा हे अऊ ओकर आगु मा सांप हा मरे परे,  देखते ही मै अपन आप ला नई रोक पायेंव सेरू ले लपट के रोय बर धरलेंव मोर आंखी ले आंसु गिरे लागिस, देखते-देखत घर के सबो झन सकलागे।  सब के आंखी ले आंखी ले आंसु बहिगे।  सबले जादा रुखमनी दीदी रोवत रहिस अऊ सब ला बताईस कि आज ये सेरू हा मोर बेटा नमन के खातिर अपन जान गंवादिस आज हम सबो झन सेरू के कर्जदार हन रिनी हन अऊ सेरू के करजा ला छूटना हमर बर असम्भव हे,  अतका ला सुन के सबो झन हा सेरू ले लिपट के अऊ जादा रोय बर धरलिस अऊ सहीं मा हमन ला अपन आप मा बहुत दुख लागीस,  काबर की आज हमन ओ बेजुबान के कर्जदार हन जेला छूटना ये जनम छूटना हंथेरी मा सरसो उगाय के समान हे।
             । जय जोहार जय छत्तीसगढ़।