रविवार, 30 अगस्त 2015

बचपन- श्रवण साहू

मन बेशक़ निर्मल इरादें कितने सच्चे थे।
रो कर मात्र सब कुछ पा लेना अच्छे थे।
उम्र की मार तो रूला ही दिया 'श्रवण'
हरपल मुस्कुराते थे जब तुम बच्चे थे।
                  - श्रवण साहू

1 टिप्पणी:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 01 अक्टूबर 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद! .

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