सोमवार, 30 नवंबर 2015

चश्मा के करिश्मा

            चश्मा के करिश्मा
मजबूरी मा कोनो ता कोनो छाय बर
कोनो देखे बर,अऊ कोनो देखाय बर
                      लगाये हे चश्मा !!!

करिया काखरो ता कखरो सफेद
कति ला देखत हे पाबे कईसे भेद
कोनो दिल के बात ला लुकाय बर
                     लगाये हे चश्मा !!!

काखरो सस्ता काखरो हा माहंगा
काखरो हा निक ता काखरो भड़ंगा
कोनो अपन औकात ला बताय बर
                     लगाये हे चश्मा !!!

का बुड़हा,का लईका अऊ का जवान
चश्मा पहिरे हे गरीब अऊ का धनवान
कोनो आँखी ला कचरा ले बचाय बर
                     लगाये हे चश्मा !!!

अद्भुत हे संगवारी सुन चश्मा के कहानी
लागय हे सब चश्मा कारन आनी बानी
फेर 'श्रवण' नयन के पानी छुपाय बर
                         लगाय हे चश्मा !!!

रचना- श्रवण साहू
ग्रा.-बरगा,जि.-बेमेतरा (छ.ग.)
मोबा.- +918085104647

                   

सोमवार, 23 नवंबर 2015

झांसी की रानी लक्ष्मी बाई / poem by shravan sahu

वीर वही और धीर वही,थी वही बड़ी बलिदानी।
छोटी उम्र पर रण में जूझी थी वही स्वाभिमानी।।

उम्र में हंसी ठिठोली की खेली थी खून की होली।
ब्रिटिसों पर भारी पड़ी थी  मनु  बाई की टोली।।

पीठ पर पुत्र को बांध हाथ में चमकते तलवार।
गर्जना करती लक्ष्मी रन में घोड़े पर हो सवार।।

लोहा लेकर मार गिराये कितने ही दुष्ट अभिमानी।
वतन के नाम लिख दी थी जिनसे अपनी जवानी।

बता दी जिसने जन को क्रांतिकारी की परिभाषा।
जिनसे आयी थी झांसी को हक पाने की आशा।।

नारी थी नारायणी वे तो दे दी अपनी भी कुर्बानी।
हरदम वंदन हे! लक्ष्मी बाई, झांसी की महारानी।
                 
                 ✒श्रवण साहू
              बरगा ,जि.बेमेतरा (छ.ग.)
               +९१-८०८५१०४६४७


शुक्रवार, 6 नवंबर 2015

परब देवारी मनावय


            परब देवारी मनावय

घर अंगना ला,निक निक सजावय रे संगी
परब देवारी मनावय,परब देवारी मनावय

चार दिन एकतऊहा दिन देवारी ले,
            उजरावय घर अंगना ला सुवारी
महतारी मन तारी पीट सुवा नाचय,
             जावय घर - घर सबके दुवारी
मोहरी दफड़ा बाजे गुदुम मनला भारी भावय
परब देवारी मनावय, परब देवारी मनावय

उमंग भराये आज सबो के हिरदे मा
           नवा कपड़ा अऊ गहना बिसाये
धनतेरस के दिन लक्ष्मी दाई के
           जूरमिल सुमर सुमर जस गाये
मंदिर मंदिर घर घर म सूरति दिया जलावय
परब देवारी मनावय, परब देवारी मनावय

गऊरा चौरा मा गऊरी गऊरा के
               सुग्घर मिलके बिहाव मढ़ाये
संझौती बेरा घर घर मा जाके
               गऊ दाई ला खिचरी खवाये
भाईदूज भाई चारा बर मंडई मातर रचावय
परब देवारी मनावय, परब देवारी मनावय।

रचना-श्रवण साहू
गांव-बरगा जि.-बेमेतरा
मोबा. +918085104647

बुधवार, 4 नवंबर 2015

मुक्तक

*********************************
अपनों से अपने गम,छुपाया नहीं करते।
यूं रूठ कर अपनों को,पराया नही करते।
इश्क दरिया दरियों से गहरा है 'श्रवण'
छोटे दिल वाले डुबकी,लगाया नहीं करते।
*********************************
               श्रवण साहू

छत्तीसगढ़ी मुक्तक

**************************
मै छत्तीसगढ़िया अंव मोला गुमान हे।
भाखा मोर छत्तीसगढ़ी मोर पहचान हे।
करम के रोटी मेहनत के पसिया पिथंव,
किसान के बेटा अंव अतके स्वाभिमान हे।
*********श्रवण साहू **********

गीत

                गीत

इंहा के माटी §§§ चन्दन हे गा
छत्तीसगढ़िन दाई ला बन्दन हे गा

१)गीत गावय कोयली तान देवय मैना-
   गुरतुर गुरतुर जिंहा के बोली बैना
मंदरस कस भाखा,दुख भंजन हे गा
                      छत्तीसगढ़ दाई......
२)पांव मढ़ावय सुरूज भिनसरहा बेरा-
  कोरा कौशल्या के अऊ शबरी के डेरा
बछर बारा घुमे जिहां,रघुनंदन हे गा
                       छत्तीसगढ़ दाई.......
३)महिमा बतावय जेखर डोंगरी पहारी-
  रूखवा नरवा तरिया तोर करय चारी
माथ नवांवय जेला,साधु सन्तन हे गा
                        छत्तीसगढ़ दाई.......

रचना- श्रवण साहू
गांव-बरगा जि-बेमेतरा
मो. - +918085104647
  

छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना

  "नईहे अगोरा" - "आगे हे बेरा"

जाग जाग करमईता लाल
देख अपन महतारी के हाल
                छत्तीसगढ़ महतारी रोवत हे
               बीर नारायन मन ला जोहत हे
अन्याय सहत हे हमर महतारी
सुसकत बिलखत हवे बिचारी
                    भ्रष्टाचारी किरा चाबत हे
                    अत्याचारी घेंच दाबत हे
दाई के गहना ला नंगालिस
संस्कृति मा आगी लगा दिस
                दाई के दुलरवा किसान घलो
                 रोवत हे! हवे हलाकान घलो
हमर घर मा दुसर के राज
हम भीखारी अऊ वो महराज
                  कपटी के होगे हवे सियानी
                     अऊ करत हवे मनमानी
कईसे तोला लाज नई लागय
काबर तोर नींद नई भागय
              महतारी के चल छुटबो करजा
                जग मा देवाबो वोला दरजा
लाल लाल लाल लाल कर देबो
कपटी के बारा हाल कर देबो
           बैरी के जूरमिल काल कर देबो
           लाल लाल लाल लाल कर देबो

         रचना- श्रवण साहू
         गांव-बरगा जि.-बेमेतरा
         मोबा. +918085104647
                

सोमवार, 2 नवंबर 2015

गज़ल

                 गज़ल

सितारों के बीच मैं जुगनू सा जगमगाता हूं,
ख़ता क्या सुर मिले तो यूं ही गुनगुनाता हूं।

छाले पड़े पैरों में दुनिया के भागम भागों में,
ख़ता क्या आगे नही पीछे ही चला आता हूं।

रंजोगम दुनिया में कितने ही बेवफा देखें,
खता क्या नजरों सें चुपके ही नीर बहाता हूं।

सैंकड़ों के बीच भी तन्हा सा ही रोता 'श्रवण',
खता क्या सनम की याद में ही चैंन पाता हूं।
         - श्रवण साहू