शनिवार, 1 अगस्त 2015

अब कैसा ऋतु पावस?

न चमकता सौदामनी,
न गरजता पयोधर,
न वृष्टि मही में,
स्वच्छ क्यों अम्बर,
उजड़ी बीहड़,
निर्जल तरंगिणी,
हुतासन सा मरूत,
न सुखद् बयार,
बरसती निदाघ
कलपता जीव,
विकल सा धरातल,
कैसा अब ऋतु पावस?
शुन्य सा निलाम्बर,
कारण क्या?
कुपित भास्कर?
मानव पाप?
या,
उच्छिन्न पूरंदर?

रचना- श्रवण साहू
गांव-बरगा थानखम्हरिया
मोबा. 08085104647

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