रविवार, 30 अगस्त 2015

बचपन- श्रवण साहू

मन बेशक़ निर्मल इरादें कितने सच्चे थे।
रो कर मात्र सब कुछ पा लेना अच्छे थे।
उम्र की मार तो रूला ही दिया 'श्रवण'
हरपल मुस्कुराते थे जब तुम बच्चे थे।
                  - श्रवण साहू

वर्ण पिरामिड रचना - श्रवण साहू

आज "वर्ण-पिरामिड" रचना  का प्रयास किया हूँ, सुधारात्मक प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा हैं।
****विषय- वर्षा वियोग****
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घटा
बरस
रिमझिम
देखते राह
सबकी तू चाह
कर दे झिलमिल
तुझ बिन हैं निरस
मत हमको अब सता
हितैषी है हमारी तू जता
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    रचना - श्रवण साहू
    गांव-बरगा जि-बेमेतरा (छ.ग.)
   मोबाईल-+918085104647

गुरुवार, 27 अगस्त 2015

छोटी सी मेरी अभिलाषा - श्रवण साहू

    ......अभिलाषा.......
सिमटती हुई इस दुनिया में ,
             छोटी सी मेरी अभिलाषा।
सरल जीवन के श्वेत पन्नों में,
         लिखुँ मानवता की परिभाषा।
                       ✏ श्रवण साहू

जिद उनकी आदत मेरी - श्रवण साहू

            श्रवण की कलम से.....
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आदत था मेरा रोज रूठ जाना,
            उनकी भी जिद थी मुझे मनाना।

आदत था मेरा उनसें नजरें चुराना,
        उनकी भी जिद थी बांहों में समाना।

आदत था मेरा रोज उन्हें सताना,
      उनकी भी जिद थी प्यार में डुब जाना।

मोहब्बत के पथिक हम चलते गये,
       रूठना मनाना मगर हरपल मुस्कुराना।

कैसी आंधी आयी अब जीवन में,
          कितनी दर्द, ऐसा हो गया है फसाना।

जिद है उनकी मुझे अकेले छोड़ जाना,
      आदत हो गया मेरा रोज अश्क बहाना।
          
                             - श्रवण साहू



बुधवार, 26 अगस्त 2015

राखी परब मा श्रवण साहू के गीत

राखी परब के गीत.......
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दीदी तोला झुलना झुलांव ²
आये राखी के तिहार,चले मया के बयार।
मन के हिंडोलना फंदांव²
                       दीदी तोला झुलना.....

१) बांध देबे बहिनी तै कलाई मा मोर राखी,
     भाई बहिनी के मया के हावे येहा साखी।
बलिहारी तोर मैं जांव²
                        दीदी तोला झुलना.....

२) जाके ससुरार दीदी तैं मोला झन भुलाबे,
      करबे झन पराया, सुख दुख ला बताबे।
आंखी ले आंसु बोहांव²
                          दीदी तोला झुलना.....

२) जिनगी भर दीदी तैंहा हांसत गावत रहिबे,
     दुनिया भले ताना मारे सुनता गोठ कहिबे।
करबे सुमत के छांव²
                             दीदी तोला झुलना....

            रचना- श्रवण साहू
            गांव-बरगा जि-बेमेतरा(छ.ग.)
            मोबा- +918085104647

heart touching poem - shravan sahu

ये कैसी मजबूरी....
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मैं लायक नही सनम संग मेरा छोड़
"वो रो कर बोली मैं मजबूर हूँ"

ये प्रेम विचित्र रोग है,रिश्ता न जोड़
"वो रो कर बोली मैं मजबूर हूँ"

हर पल दुख मिलेंगे नाता अब तोड़
"वो रो कर बोली मैं मजबूर हूँ"

चंद रोज बाद...
अश्रु बह गया मेरा, जब मैनें बोला..

रह नही सकता बिन तेरे,मुंह न मोड़
  "वो रो कर बोली मैं मजबूर हूँ"
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        रचना-श्रवण साहू
        गांव-बरगा जि.- बेमेतरा (छ.ग.)
        मोबा.- +918085104647

मंगलवार, 25 अगस्त 2015

रक्षा बंधन पर्व पर श्रवण साहू का कविता

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अधिकार नही तुझें भैया मेरे आज राखी बंधवाने को,
मुझे तो बहना कहते तुम बाकि को जाते सताने को।

दोस्तों संग मिलके कितनों को परेशान तुम करतें हो,
घिनौंना हरकत करतें आखिर क्यों नही तुम डरतें हो।

तुम्हारे ही खातिर न जाने कितनें ही रोज ऐसे मरते हैं,
रोती बिलखती कितनें दुष्कर्मों की अग्नि में जलते हैं।

क्यों न याद करतें तुम उस वक्त अपनी इस बहना को,
भुल जाते क्यों ऐ भैया हमारे माँ-बाप की कहना को?

रक्षा सूत्र बांध पापी को क्यों रिश्ता यूं बदनाम करूं,
अपराधी हो तुम भैया मेरे,तुमसे मैं भी हरपल डरूं।

रक्षा करूंगा सबकी बहनों का गर ऐसा संकल्प करो,
हँसते बांध दुँगी राखी तुमको तुम न मुझसे ऐसे डरो।
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रचना- श्रवण साहू
गांव-बरगा, बेमेतरा (छ.ग.)
मोबा. - 8085104647

गज़ल - श्रवण साहू

                 गज़ल

सुख की चाह रख,चलते-चलते हम,
जीवन के कठिन मोड़ से निकला था।

मची थी हलचल शायद कुंडली में मेंरे,
शनि के हाथों की मरोड़ से निकला था।

आवाक सा हो गया था पूरी डगर में,
छुके गुजरी मौत ऐसे रोड से निकला था।

रोता और बिलखता रहा मैं उम्र भर,
अपनी मंजिल जो छोड़ के निकला था।

गुस्ताखी यह था मेरा सुख के खातिर,
प्रकृति के नियम को तोड़ के निकला था।
                     
                        ✏ श्रवण साहू

गुरुवार, 20 अगस्त 2015

मया के गोठ

  
                                  
       !! फुलकईना !!

मया के डोरी मा बाँध के,
           धरधर मोला रोवाये!
बिलख बिलख मन रोये,
         आँखी ले आंसु बोहाये!

सहावत नईहे अब पीरा हा,
             अऊ कतका धीर धराबे।
सुसक सुसक के दिल रोये,
               मोर तो चेत हरागे।

तोला देखेबर नयन तरसत हे,
              मोर मन होगे उदास।
तोर अगोरा मा रस्ता देखत,
             जीव मोर होगे हदास।

आजा रे मोर फुलकईना तै,
            मोला जादा झन रोवा।
मोर जिनगी मा गढ़दे फुल
              काँटा झन वो बोंवा।

तोर बिन मोर जिनगी के,
              नईहे कोनो थिरभाव।
मोर जिनगी मा फुल खिलाके,
                करदे मया के छाँव।
करदे मया के छाँव।
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रचना@ श्रवण साहू
गांव - बरगा जि. बेमेतरा (छ. ग.)
मोबा.-+918085104647

छत्तीसगढ़ के महिमा

       ।।छत्तीसगढ़ महिमा।।

जय जय हे छत्तीसगढ़ महतारी।
         तोर महिमा जग मा बड़ भारी।।
ऋषि मुनि अऊ तपसी के डेरा।
         सबो जीव जंतु के तैंहा बसेरा।।
हरियर हावय मा तोर कोरा।
           रूप तोर मोहय चंद्र चकोरा।।
तीरथ तंही, तंही चारो धाम।
         पांव रखे जिंहा मोर प्रभु राम।।
बड़ निक लागे धनहा डोली।
         हवे सुग्घर तोर गुरतुर बोली।।
धान पान के तैंहा उपजईया।
         सबो प्राणी के प्रान बचईया।।
बड़े बिहना कोयली गुन गाये।
        चिरई चिरगुन महिमा बताये।।
नाचय रूखवा झुमरय खेती।
       भारत मां के तैं दूलौरिन बेटी।।
नरवा, डोंगरी मन ला भाये।
       परबत मुकुट शोभा बढ़हाये।।
तोर चरण मा माथ नवांवय।
     तोर'दुलरवा',गुन तोर गांवय।।
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रचना@श्रवण साहू
गांव-बरगा जि. बेमेतरा (छ.ग.)
मोबा. - +918085104647

बुधवार, 19 अगस्त 2015

मोर गांव मा रोज मेला

।।मोर गांव मा रोज मेला।।

छत्तीसगढ़ के कोरा मा बसे,
          मोर गांव मा रोज हे मेला।
आठो काल बारो महिना,
         बिहनिया ले संझा के बेला।

कुकरा बांसत होत बिहनिया,
              डबर रोटी वाले आथे।
लईका,जवान अउ सियनहा,
           चाय मा बोर बोर खाथे।

ओकर पाछु चिल्लावत आथे,
           कोचनीन हा धरे मोटरा।
आनी बानी साग भाजी लाथे,
         पताल,रमकेलिया,बटरा।

ऊवत सुरूज पांव मढ़ाथे,
          केंवटिन हा बोहे टुकेना।
भोक्का लाड़ु,लाई,मुर्रा
          बेंचत चना अऊ फुटेना।

साईकिल के घंटी बजावत,
         अब फुग्गा वाले हा आगे।
केंश के बदली पिन अउ फोटू,
           लईका मन सुनते भागे।

होगे बेरा  कपड़ा वाले के,
            चढ़ के स्कूटर मा आय।
कुरथा पेंट धोती पजामा
             साड़ी हा मन ला भाय।

बेरा डरकत संझौती समय,
             ठेला लागावय मनिहारी।
बेटी बहू टिकली फूंदरी बर,
             सकलागे सब पनिहारी।

अईसन मेला भराथे संगी,
              मोर बरगा गांव मा रोज।
दया मया के निरमल छांव,
             आजाते गा मोर गांव सोज।
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रचना@ श्रवण साहू
गांव-बरगा जि. बेमेतरा (छ.ग.)
मोबा-08085104647

।।जमाना।। - मुक्तक

         ।। जमाना।।
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सुन मुसाफिर अब जाग
          संतन के संग मा लाग।
भागम भाग मात गे जी
         जमाना मा लागे आग।

जब कोलिहा छेड़य राग
         ता कोयली गय भाग।
हंस खाय गोंटी माटी
         मोती खावत हे काग।

लुटेरा गेहे अब जाग,
            मितान होगे हे नाग।
ये कईसे दिन रे बाबा,
            चंदा मा लगे हे दाग।

स्वार्थ कैची,प्रेम ताग,
           परे धार, टुटगे धाग।
अतका भुखागे मनखे,
        जीव-जन्तु बनगे साग।

सुन मुसाफिर अब जाग,
          संतन के संग मा लाग।
भागम भाग मात गे जी,
          जमाना मा लागे आग।
××××××××ק§§§××××××××××××
रचना @ श्रवण साहू
गांव-बरगा जि.बेमेतरा (छ.ग.)
मोबा.- 08085104647
 

मंगलवार, 18 अगस्त 2015

भादो के महिना

       ।। भादो के महिना ।।
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सावन के महिना सहीं,
        भादो घलो पबरित लागे।
फुलगे अंगना,चंदैनी गोंदा,
             जगमग ले जगमगागे।
रंजनी गंधा,गुलाब,मोगरा,
              महर-महर महमागे।
मिट्ठू कोयली मैना के भाखा,
           संग गाये के सुध जागे।
करमा ददरिया पनिहारिन के
          हिरदय ला सबके भागे।
नाचत बंदरिया मदारी के,
          देखत मन खुशी समागे।
रूखराई घलो झुमरत हे,
            देख नाचे के मन लागे।
गाय गरुवा के घुंघरु घंटी,
           घड़र-घड़र संग बाजे।
सुनत बंशी बरदिहा के,
        रस्ता मा घड़ी बिलमागे।
नरवा के झरझर पानी,
            देख गंगा जईसे लागे।
भजन कीर्तन भक्तन के,
         सुन दुख पीरा बिसरागे।
××××××××ק§§§§××××××××××××
रचना@श्रवण साहू
गांव-बरगा जि.-बेमेतरा (छ.ग.)
मोबा. -08085104647

शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

युग संदेश

।।। युग-संदेश ।।।
**********************
चलो चलें अब मिलकर फिर से,
            स्वतंत्र तिरंगा फहराने को।
मुक्त किये जो पराधीन से हमें
          उन शहीदों के गुण गाने को।

चलो चलें अब मिलकर फिर से,
           एकता के कदम बढ़ाने को।
हो गये कुर्बान हमारे खातिर,
           उन्हें श्रद्धा फूल चढ़ाने को।

चलो चलें अब मिलकर फिर से,
           अपनी हिम्मत दिखाने को।
कापुरूष कहते जो बैरी हमको,
            वीरता उसे भी बताने को।

चलो चलें अब मिलकर फिर से,
             एक नया मुकाम पाने को।
सोने की चिड़िया भारत मां में,
          एक नयी दीपक जलाने को।

चलो चलें अब मिलकर फिर से,
             एकता की मार्ग बनाने को।
हंसेंगे संग में रोयेंगे संग में,
          एक नई सुविचार बताने को।
***************************
।। जय हिन्द ।।*।। जय हिन्दवासी ।।
***************************
रचना- श्रवण साहू
गांव - बरगा, बेमेतरा (छ. ग.)
मोबा. - 08085104647

गुरुवार, 13 अगस्त 2015

।।। हरेली गीत ।।।

   ।।। हरेली गीत ।।।
                   - श्रवण साहू
   आय हे हरेली आय हे हरेली,
   सुनव संगी अऊ नँघरिया
   जाबो अमरईया गाबो ददरिया,
   चलव चलव जँहूरिया।²

१)गेंड़ी मा चड़बो रस्ता गड़बो,
    आनी बानी पेड़ लगाबो,
    खो-खो खेलबो झुलना झुलबो,
    पूरखा के रीत बचाबो,

    *आगे हे बेरा नईहे अगोरा.... ²
    मेहनत करबो हलधरिया
                 जाबो अमरईया....

२)बड़े भिनसरहा धनहा डोली मा,
    गुड़हा चिला गड़ाबो,
    नागर बिंधना टंगिया धोके
    ठाकुर देव ला मनाबो,

   *सुमर सुमरनी देवी देवता के... ²
    झूमर बरसाही बदरिया
                    जाबो अमरईया.....

       रचना- श्रवण साहू
      गांव - बरगा थानखम्हरिया
       मोबा. -8085104647

बुधवार, 12 अगस्त 2015

संगीत - भजन करने का साधन

"काव्य शास्त्र विनोदेन-
                           कालो गच्छति धीमताम्।।"

रचना चोरों की महानता

चन्द लाईनें उनके नाम जो दूसरों के
मेहनत में अपनी वाह वाही बटोरते हैं-

मै भी एक कलाकार हूँ।

मानो या ना मानो सखा
माध्यम हूँ विचार फैलाने का।
सबकी रचना अपनी नाम कर,
दिल जीत लूँ मै जमाने का।

मेहनत मै न करता फिर भी,
कितने लाईक, मुझे ही आते।
मै अनोखा सा लगता हू सबको,
न जाने कितने, मुझे ही भाते।

मै सीमित हूं वेब तक ही,
वास्तविक में,मै नकलमार हूँ।
कर्ताओं के कृपा पात्र हूँ मै,
क्योंकि मैं भी एक कलाकार हूँ।
                   ✏श्रवण साहू
              गांव-बरगा थानखम्हरिया

कहानी (देखा देखि मा गलती)

धियान लगाये सुनहू संगवारी काहत हव आज कहानी,
××××××××××××××××××ק§§§§§§§×××××××××××
एक घंव के बात ये गा, एकठन हवई जहाज मा एक झन सेठ अऊ ओकर पोंसे मिट्ठू, दूनो झिन बढ़िया सफर करत रहीथे, हवई जिहाद बने उड़त  हे।  बीच मा होथे का? एक झन एयर  होस्टेस नोनी नाहकत रहिथे आगु ले,, ओला देख डरिस मिट्ठू हा,  अऊ ओहा मार दिस  सीटी, वोला  सुनिस हवई सहायिक नोनी हा अउ ओहू हा हलू कन धीरे से मुस्का दिस, बात कट गे जी,!
                     थोरकुन बाद मा फेर वो हवई सहायिका हा वापस लहूटत रहय,अब तो ए पईत सेठ जी सीटी मार दिस, नोनी राहय तेन भड़क गे,  वो हा आगे जाके सिकायत लिखवईस,  अब पोंगा मा ऐलांउस होईस के वो दूनो झन सीटी बजईया मन ला हवई जहाज ले फेंके जाय, दुनो झन ऊपर भारी बड़ अलहन आगे गा।  एक दूसर के मुहू ला बोट बोट देखे,  मिट्ठू सेठ ला कहिथे -  कस गा तोला उड़ाय बर आथे?  भईगे सेठ बिचारा के हवा पानी बंद,  फेंका गे गा हवई जहाज ले।।
सीख:- हर बेर के देखा सिखी बने नि होय,  बिन अकल के नकल करईया खपला जथे।
                     
          - श्रवण साहू
      गांव-बरगा थानखम्हरिया

संतो के निंदक सुनो!


चन्द लाईन उनके लिये जो बिना सत्य को जाने ही  अपनी प्रशंसा के लिये,हाई लाईट होने के लिये, संतो और गुरू पर किचड़ उछालते हूऐ अनेक प्रकार के पंक्ति गढ़ते रहते हैं।
*****************
संतो की निन्दा करने वाले,
हँसकर कभी न जी पाया है।
जाम अनेक पीये होंगे मगर,
हरिनाम रस न पी पाया है।।

आयु,वंश,सम्मान मिट गये,
जिसने गुरु पे दाग लगाया है।
खुब हंसते होंगे दिनभर,मगर
रात में कभी न चैन पाया है।

राम, कृष्ण, दिनेश महेश भी,
संतो अरु गुरू का गुण गायें है।
विवेकानंद, कबीरा, नानक जैसे,
गुरू चरणों मे शीश झुकायें है।

गुरु के ही कृपापात्र होकर ही,
ध्रुव जैसे आसमां मे जगमगाते हैं।
इतिहास भी साक्षी गुरु पक्ष में,
डाकु भी विद्वान हो जाते हैं।

दाग तो निगुरा लगा ही दिये थे,
कृष्ण राम जैसे भगवानों पर।
पालनहारी स्वामी थे जगत् का,
ग्रहण लगे उनके भी सम्मानों पर।

निश्चित ही यह कलयुग का
एक परिचय और दुष्प्रभाव है।
पिटते सज्जन सत्पुरुष यहां,
शकुनी जैसो का चलता दाव है।
*********************
काॅपी राईट @श्रवण साहू, बरगा
दिनांक- 09-08-2015

प्रेम नगरी

विचित्र प्रेम नगरी,
कंटक अति,सँकरी।
सफल क्लिष्टतापूर्ण,
अथाह अगम गहरी।
प्रसन्न चित कभी,
तो कभी रूदन,
बिछड़ना प्रिये से,
तो कभी मिलन।
निशदिन वार्ता,
रूठना मनाना,
प्रित दिखाने को,
अश्रु भी बहाना।
एक डर भी संग,
बिछड़ने का
विश्वास भी संग,
मिलने का।

रचना - श्रवण साहू
गांव - बरगा थानखम्हरिया
रचना दिनांक- 11-06-2015

कुंडलियॉ

           ।।। कुण्डलियाॅ ।।।
×××××××××××××××××××××××××××××××××××××
तिरंगा हमर शान गा, आय भारत के मान।
तीन रंग के झंडा हा,हिंदु के हरय अभिमान।
हिंदु के हरय अभिमान,सब कोई गुन गावै।
सुनाय भक्ति के गीत,मुसलमां घलो भावै।
कह'श्रवण कुमार साहु',फूल गिरे रंग बिरंगा।
सब झन टेकय माथा,जय होवै तोर तिरंगा।
××××××××××××××××××××××××××××××××××××××
रचना-श्रवण साहू
गांव- बरगा, थानखम्हरिया

रविवार, 9 अगस्त 2015

कौन स्वतन्त्र हैं?

**********************
आखिर कौन आजाद यहां?
          जो स्वतंत्र दिवस मनाते हैं।
दिखता सत्य सबको मगर,
          यूं ही क्यों दिल बहलाते है।

न स्वतंत्र वह अजन्मी बच्ची,
         इस भव सागर में आने को।
आ भी गयी तो क्या सहीं?
       तकते दरिंदे,उन्हें मिटाने को।

क्या स्वतंत्र हर घर की बेटी?
             उंची शिक्षा को पाने को।
कितने बैठे दुश्मन देख लो,
           सक्रिय है इन्हें सताने को।

आजाद नही है नेंक जवान,
          अपनी विचार फैलाने को।
सच बोले झुठ लगता है,
         खुद झुठी,इस जमाने को।

आम जनता,गुलाम नेता का,
         क्या मनमर्जी कर पाता है?
उगाता खुद ही अन्न मगर,
          नेता दे,तब ही खाता है।

कितनी और झुठी तसल्ली?
               देते रहेंगे दिल को हम।
अच्छा होता गर होता ऐसा,
        खुद स्वतन्त्र हो,रखता दम।
************************
************************
काॅपीराईट@श्रवण साहू
पता-बरगा,थानखम्हरिया
मोबाइल-08085104647
दिनांक- 10-09-2015

ये वो महंगई बहिनी

ये वो मंहगई दीदी
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ये दीदी!सुन ले वो मोर बात!
गोहारत हन हम,दे हमर साथ!
झन कर हमला तना नना, 
हम मजदूर गरीब के जात।

तोर भतिजा मुड़पेलवा भ्रष्टाचार!
बैरी बनगे,करथे अत्याचार!
संझा बिहनिया मारथे डंडा,
नाच नचाथे नागिन पार।

दूखिया ला अउ झन दुखा!
परत हे उपर ले अऊ सूखा!
दूबर बर दू अषाढ़ होगे,
हम मर जबो अईसने भूखा।

बेरोजगारी मा होगेन रीता,
पेट घुसरगे अब एक बीता,
मात गेहे दीदी करलई वो,
पसिया पिथन नईहे सीथा।
*********************
      ✏श्रवण साहू
गांव-बरगा,थानखम्हरिया

रविवार, 2 अगस्त 2015

एक विरह गाथा छत्तीसगढ़िया का - श्रवण साहू

।।। एक विरह गाथा ।।।
              - एक छत्तीसगढ़िया

सूदूर प्रदेश से आया था,
बेसहारा एक मेहमान।
बेघर, अपरिचित थे मगर,
मैने दिया उसे सम्मान।

पहनने को कपड़ा दिया,
खाने को दिया रोटी।
कोना घर का रहने को,
दिया काम था छोटी।

खेत जाता साथ मेरे,
हाथ संग मे बटाता।
बन गया दिनचर्या यही,
अजीब सा हो गया नाता।

दर्जा दे बैठा भी मैने,
उसे बना दिया हकदार।
मै तो अनपढ़ था मगर,
वो सातिर, समझदार।

ऐसा हूआ अब मेरे घर में,
उसका चलता राज।
मै मजदूर सा लगता अब,
वो बन गये महाराज।

मै बुढ़ा हो गया था,
उसका था जवानी
ये कैसा दिन आ गया,
करता वह मनमानी,

मेरे ही घर,मै गुलाम
आदेश वही चलाता।
असमर्थ देंह मेरा था
कितना और कमाता।

अब अत्याचारी बन,
मुझे बहूत सताता,
अहसान भुल गया अब,
उसे रहम न आता।

क्या कर सकता था,
हो गया था मै लाचार,
बेसहारा बेघर कर दिये,
करके वह अत्याचार।

कौन था मैं? कौन मेहमान?
मैं छत्तीसगढ़िया,।
परदेशिया मेहमान।
कटू लगे मगर सत्य यही
देख लो अभी वर्तमान।

रचना-श्रवण साहू
गांव-बरगा थानखम्हरिया
मोबा. 08085104647

चौपाई- वर्षा वियोग पर

।। अथ बरषा प्रतिवेदनम् ।।

भये श्रावण कर्तव्यविमूखा।
       कारण कवन पड़यहि सूखा।।१।।
बिकल इत उत जीव बिचारा।
      लागहि कैसो नांव किनारा।।२।।
चैन न आवहि मोहे दिनराता।
    बैरहि मेघ,नीर नहि बरसाता।।३।।
सूखहि तरु,नदि नहि नीरा।
     देखहू नाथ बाढ़हि मम पीरा।।४।।
उपजहू मनहि विविध कलेशा।
         सुनहू बिपतहारी गणेशा।।५।।
रोवहि नाथ इंहा नर नारी।
       संकट बिकट परो गिरधारी।।६।।
होई केवल संकट दिन चारी।
      देखहू जगपति दशा हमारी।।७।।
कछुक दिन रहहि यह बाता।
     मिटहि सृष्टि सुनहू जगधाता।।८।।
बिनति अब सुनहू प्रभु मोरा।
     चरण सरोज पखारहू तोरा।।९।।
             ।। दोहा ।।
तात अरज बिकल हो करिहउ
                 सुमर सुमर गुन गांवहु।
करहू 'श्रवण' बिनती पूरंदर,
                 घुमर घुमर बरषावहू।।१।।

रचना-श्रवण साहू
गांव-बरगा थानखम्हरिया
मोबा. +918085104647

शनिवार, 1 अगस्त 2015

हाय अब कईसन सावन

।।। विरह गीत ।।।

हाय अब कईसन सावन। 
मन लगे बिरहा गीत गावन। 
सबके चेत हरागे अब तो, 
रोवत हे भुईयां पावन, 
                        हाय अब.....

चमकत बिजली के डर कहां, 
घुमरत बदरा के डर कहां, 
गरजत घटा के डर कहां, 
छलकत नरवा के डर कहां, 
नईहे सौंधी खुशबु के आवन। 
                       हाय अब....... 
रोवत हे कईसे अमरईया, 
सुख्खा आगी कस पूरवईया, 
कईसे करही खेती कमईया, 
भुलागे गीत ला अब चिरईया, 
मन मा लागे हे डर्रावन। 
                       हाय अब.....
जेठ बईसाख जस घाम छागे,
झिरिया,नरवा,तरिया अटागे, 
झुमरत फसल कईसे अईलागे, 
सबो परानी के मन करलागे,
लागत नईहे दुनिया मनभावन। 
                        हाय अब....
हे उपर वाले!का करन बता ना,
कलपत मनखे ला झन सता ना 
परान बचाये के रस्ता सुझा ना, 
मन मा लगे आगी ला बुझा ना,
प्रभु करदे गा बरखा के आवन। 
                       हाय अब..... 
रचना-श्रवण साहू 
गांव-बरगा थानखम्हरिया 
मोबाइल- 08085104647

अब कैसा ऋतु पावस?

न चमकता सौदामनी,
न गरजता पयोधर,
न वृष्टि मही में,
स्वच्छ क्यों अम्बर,
उजड़ी बीहड़,
निर्जल तरंगिणी,
हुतासन सा मरूत,
न सुखद् बयार,
बरसती निदाघ
कलपता जीव,
विकल सा धरातल,
कैसा अब ऋतु पावस?
शुन्य सा निलाम्बर,
कारण क्या?
कुपित भास्कर?
मानव पाप?
या,
उच्छिन्न पूरंदर?

रचना- श्रवण साहू
गांव-बरगा थानखम्हरिया
मोबा. 08085104647