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अधिकार नही तुझें भैया मेरे आज राखी बंधवाने को,
मुझे तो बहना कहते तुम बाकि को जाते सताने को।
दोस्तों संग मिलके कितनों को परेशान तुम करतें हो,
घिनौंना हरकत करतें आखिर क्यों नही तुम डरतें हो।
तुम्हारे ही खातिर न जाने कितनें ही रोज ऐसे मरते हैं,
रोती बिलखती कितनें दुष्कर्मों की अग्नि में जलते हैं।
क्यों न याद करतें तुम उस वक्त अपनी इस बहना को,
भुल जाते क्यों ऐ भैया हमारे माँ-बाप की कहना को?
रक्षा सूत्र बांध पापी को क्यों रिश्ता यूं बदनाम करूं,
अपराधी हो तुम भैया मेरे,तुमसे मैं भी हरपल डरूं।
रक्षा करूंगा सबकी बहनों का गर ऐसा संकल्प करो,
हँसते बांध दुँगी राखी तुमको तुम न मुझसे ऐसे डरो।
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रचना- श्रवण साहू
गांव-बरगा, बेमेतरा (छ.ग.)
मोबा. - 8085104647
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