बुधवार, 12 अगस्त 2015

प्रेम नगरी

विचित्र प्रेम नगरी,
कंटक अति,सँकरी।
सफल क्लिष्टतापूर्ण,
अथाह अगम गहरी।
प्रसन्न चित कभी,
तो कभी रूदन,
बिछड़ना प्रिये से,
तो कभी मिलन।
निशदिन वार्ता,
रूठना मनाना,
प्रित दिखाने को,
अश्रु भी बहाना।
एक डर भी संग,
बिछड़ने का
विश्वास भी संग,
मिलने का।

रचना - श्रवण साहू
गांव - बरगा थानखम्हरिया
रचना दिनांक- 11-06-2015

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