गुरुवार, 27 अगस्त 2015

जिद उनकी आदत मेरी - श्रवण साहू

            श्रवण की कलम से.....
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आदत था मेरा रोज रूठ जाना,
            उनकी भी जिद थी मुझे मनाना।

आदत था मेरा उनसें नजरें चुराना,
        उनकी भी जिद थी बांहों में समाना।

आदत था मेरा रोज उन्हें सताना,
      उनकी भी जिद थी प्यार में डुब जाना।

मोहब्बत के पथिक हम चलते गये,
       रूठना मनाना मगर हरपल मुस्कुराना।

कैसी आंधी आयी अब जीवन में,
          कितनी दर्द, ऐसा हो गया है फसाना।

जिद है उनकी मुझे अकेले छोड़ जाना,
      आदत हो गया मेरा रोज अश्क बहाना।
          
                             - श्रवण साहू



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