शुक्रवार, 31 जुलाई 2015
गुरुवार, 30 जुलाई 2015
मुंशी प्रेमचंद
31 जुलाई 1880,
जीं हाँ, यही दिन था,
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आया था प्रतिभा के धनी,
अद्भुत थे प्रतिभावान।
नकारे शोषकों,अत्याचारों को,
अछुत वर्गों का किया गान।
प्रेमा, पूश की रात, प्रेरणा,
रंगभुमि, गबन,गोदान।
जन्म भुमि से कफन तक,
बनाया कर्मभूमि पहचान।
कलम शोभायमान कर में,
जिनके कृति बड़ी महान।
आधुनिक काल के युग प्रवर्तक,
अनेक पाये हैं वें सम्मान।
चांदनी सा स्वच्छ लेखन,
पड़ती है सजीव सी जान।
थे सम्राट उपन्यास के,
काव्य जगत के थे मान।
आदर्श, पूजनीय कलमकार,
निराली है जिसकी शान।
धनपत राय थे शुभ नाम
1936 में तज गये प्रान।
निःशब्द हूं मुशी प्रेमचन्द जी,
करते आपके गुणगान।
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✏श्रवण साहू
गांव-बरगा, थानखम्हरिया
मोबाइल - 8085104647
बुधवार, 29 जुलाई 2015
गुरु पूर्णिमा
लगाऊं ध्यान मै गुरु मुर्ति में
गुरु मूर्ति,ध्यान का आधार हैं।
करुं पूजा मैं गुरु चरणों की,
गुरु चरण,पूजा का आधार हैं।
लगन लगाऊं मै गुरू वाणी में,
गुरु वाणी,मन्त्र का आधार हैं।
अगम महिमा है सत् गुरू के,
गुरु कृपा,मोक्ष का आधार हैं।
गुण न कोई गा सकता कोई,
गुरु अनन्त अगम अपार हैं।
मार्गदर्शन कराते चेतना लाते,
दिखाते सदा आनंद का द्वार हैं।
दिव्य ज्योति जलाते मन में,
प्रभु का कराते गुरु साकार हैं।
नश्वर जगत मे एक हैं शाश्वत,
गुरू चरणों में कोटि आभार हैं।
✏श्रवण साहू
गांव-बरगा थानखम्हरिया
मोर घर के बिलई
बरेण्डी ले कईसे झांकत हे,
देखत हे टूकुर-टूकुर।
कब ये मन खेत जाही ता,
पिंहू दूध चुपूर-चुपूर।
देखत हे नानकुन नोनी हा,
करत हावे मुटूर-मुटूर।
भाग ना लईका बाहर कोति,
मत कर लुटुर-लुटूर।
तोर जावत देरी हे मोला,
रोटी खांहू खुटूर-खुटूर।
अब नोनी के जाय उपर,
आगे दू कुकूर-कुकूर।
खिसयावय मन मा बिलई,
करे लागे लुहूर-तुहूर।
कोनो किसिम कुकूर भागिस
हांसे बिलई मुसूर-मुसूर।
सफल होय बर काम मा अपन,
रेंगे बिलई चुटुर-चुटूर।
ऐति देखे अऊ ओति देखें,
चलत हे सुटूर-सुटूर।
हरु हरु पांव मढ़ावत घुशरे,
कुरिया मा खुशुर-खुशुर।
सबो जिनिस तारा मा बंद हे,
होगे बिलई के छुटुर-पुटूर।
बिगड़य झन मोर काम हा,
लागत हे अब धुकूर-धुकूर।
दुध टंगाय हे छिका मा,बाय होगे,
जीव चुरत हे चुहूर-चूहर।
करलागे बिलई के मन हा,
देखत हे अब टूकुर-टूकुर।
मरत हे लांघन बिलई बिचारी,
पसिया ला पिये गुटूर-गुटूर।
✏ श्रवण साहू
गांव-बरगा थानखम्हरिया
हायकू के बारे मा
सबो संगी मितान ला श्रवण साहू के राम राम जय जोहार अऊ पायलगी, आज मोला नवा जिनिस सिखे बर मिलिस, जेला काव्य के भाखा मा हायकू कहिथे।
ये हायकू हा शब्द, मात्रा, अऊ वाक्य ले बंधे एक रचना आय।
जेन हा 3 पंक्ति के रहिथे, जेकर पहिली पंक्ति अऊ आखिर मतलब तिसरा पंक्ति मा शब्द के संख्या पांच - पांच अउ वाक्य के संख्या दू रहिथे। बीच के मतलब दूसरा पंक्ति मा शब्द संख्या सात अऊ वाक्य के संख्या तीन रहिथे, येमा मात्रा के गनती नई करे जाय।
उदाहरण -
जाबे बजार,
12,1 2 3 = 5
लालेबे तैहा खोवा,
1 2 3, 1 2, 1 2 = 7
मनभर खा।
1 2 3 4,1 =5
- श्रवण साहू
अईसनहे किसीम ले महु हा छत्तीसगढ़िया किसान के दिनचर्या ला हायकु के माध्यम ले थोरकुन बताय के प्रयास करत हव
हायकू
बिहना होगे,
संगी सब जागव,
राम जापव,
नहाव चलो,
नदिया मा बढ़िया,
मजा पावव,
रातके बोरे,
महीबासी ला खाके
खेत जावव,
पाव परव,
धरती मईया के,
भाग जगाव,
✏श्रवण साहू
गांव-बरगा थानखम्हरिया
मोर गांव के देवी देवता
💐नानचुक बियंग💐
एकदिन के बात ये गा मैं हा वो पईत बनेच नान्हे रहेंव, ता अपन बबा ला कहेंव
"बबा बबा हमु हा सब जात हे तीकर मन संग मा भगवान देखे बर जाबोन गाड़ी मा चढ़ के!
बुजुर्ग के कामे हरे गा शिक्षा देना, मोर बबा घलो हा मोर कान ला धरिस अउ
कहिस :- सुन जी नाती
गांव के मुहाटी मा बईठे
सुघ्घर ठाकुर देव,
थोर कुन रकसहू गेस ताहन
महामाया के दर्शन पा गेव!
दू कदम अउ बढ़ जा ता
बईठे हे शंकर भोला,
चनादार बेलपतिया धरले
तभेच मनाबे वोला!
एकेच्च कन भीतरी घुसर जा
राम लखन दोनो भाई हे,
केंवट के डोंगा मा बईठे
संग मा सीता माई हे!
बीच गली मा बईठे हे
पवनसुत महावीरा,
सबके बिगड़ी बनावत हे
हरथे सबके पीरा!
भण्डार बाजू जाबे ता घलो
हावय गा हनुमान,
लक्ष्मण प्रान दाता के
करव मेहा गुणगान!
गांव के दईहान के सुघ्घर
करत हावय रखवारी ,
गोवर्धन पर्वत ला उठाय
खड़े हे मोर गिरधारी!
बुड़ती बाजु बईठे हे गा
पूरा जग के देखन हार,
लक्ष्मी माँ सेवा बजावत हे
शेष मा बईठे हे पालनहार!
हमर गांव के बीच खार मा
सौहत हे बंजारी माई,
सबके मनोकामना पूर्ण करथे
रहिथे सब बर सहाई!
सब देवता मोर गांव मा हे
सबो ला माथ नवावंव,
नानकुन बुद्धि मोर हे
कतेक गुन ला गावंवव!
काबर जाबे तीरथ बरथ
ईंहे बईठे देवता छप्पन कोटी,
चारो धाम मा पईसा झन फेंक
भुखन ला खवादे रोटी!!
भुखन ला खावादे रोटी!!
अब हायकु कईथे तईसने
अईसन गा,
समझा दिस मोला,
मोरेच बबा,
✏श्रवण साहू
गांव-बरगा बेमेतरा(छ.ग.)
सोमवार, 27 जुलाई 2015
डॉ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम जी को श्रद्धांजलि
लग रही है उजड़ी सी ये बस्ती,
न जाने कैसे अंधेरा छा गया,
गजब हो गया है भुमि भारत में,
घटी घटना है दुखद् सा नया।
हर मन में निवास आपका,
भारत के भविष्य निर्माता,
पूजते थे, पूजते भी रहेंगे,
दुश्मन भी है गुण गाता।
मानता है आदर्श आपको,
हर बालक हो या बाला,
चलेंगे दिखाये मार्ग पर आपके,
यही श्रद्धा सुमन की माला।
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि आपको,
अलौकिक पुरुष डॉ. कलाम,
मिसाइल मेन,वैज्ञानिक देव,
है सारी दुनिया का सलाम।
✏श्रवण साहू,
गांव- बरगा, थानखम्हरिया
शनिवार, 25 जुलाई 2015
एकता के गोठ
खटकत हे मन,
छत्तीसगढ़ लुट गे,
परदेशिया के राज,
करम हरम फुट गे,
रोवत हे आज किसान,
परान ओखर छुट गे,
अंधरा होगे सरकार,
बिसवास हा टुट गे,
होवत अन्याय देखव,
पीरा हा कईसे लहूट गे
छत्तीसगढ़ तो बनगे,
स्वतंत्र होना छुट गे,
अत्याचारी हांसत हे,
सदाचारी हा कुट गे,
ता कईसे मा बनही बात?
एकता अउ गुट मे।।
सिरिफ...
एकता अउ गुट में।।
✏ श्रवण साहू छत्तीसगढ़िया
गुरुवार, 23 जुलाई 2015
आज की हालात
मै क्यों रोता हूँ दिन रैन?
मोहे अब आवय नाही चैन।
देख दुष्टों की पाप कर्म,
निशदिन बरसत मेरे नैन..
मैं क्यों रोता हूँ दिन रैन?
असमर्थ है सज्जन अब,
सुगम जीवन बिताने को,
पांव खींचे है दुर्जन उनके,
चला है उन्हें मिटाने को,
धैर्यवान की टूटी धीरता,
वह भी फँस गया जालों में,
न जाने कितने भले आदमी
अकारण गये मुहँ मे कालों के,
बुद्धि जीवी भ्रम में पड़ गए,
आयी आंधी भ्रष्टाचार की
संत पुरुष यातना में पड़े,
जोर पड़ा है अत्याचार की,
कितना और होगा अपराध,
रोक दे भगवन खेलना खेल,
वसुधैव कुटुम्बकम हो जाये
सर्व प्राणी में हो जाये मेल,
इतनी-सी आस 'श्रवण' कर,
अब मुख से न निकसत बैन,
मै क्यों रोता हूँ दिन रैन?
मोहे अब आवय नाही चैन।।
✏श्रवण साहू
गांव-बरगा, थानखम्हरिया
मेरे तन्हाई
एक गम....
सजा-ए-मौत उसी रोज मिल गया था,
जिस दिन वो मुझसे मूहं मोड़ गयी।
सफर-ए-ईश्क के उलझी हुई डगर में,
अकेला ही जब मुझे छोड़ गयी।
जानती भी तो थी, कितना चाहता हूँ मैं,
मगर ऐसे ही क्यों दिल तोड़ गयी।
मगर एक आस...
जख्म दिया तूमने,मूझे कबुल है,
मगर मरहम तो लगाती जा।
आशियाना भी उजड़ गया मेरा,
थोड़ा ही सहीं, बसाती जा।
सुख गयी मेरे जीवन की बगिया,
रोती कलियों को सजाती जा।
हम बिछड़ गये, गम तो है मगर,
खुशी के लिए मुस्कुराती जा।
- श्रवण साहू
गांव-बरगा, थानखम्हरिया
मै हिन्दू हूँ मै भगवा धारी हूँ
सुरज की पहली किरण में भी बसा,
हम हिन्दू की मान है, स्वाभिमान है।
जलते दीपक के ज्वाला मे भी देखा,
परिचय देता, अब भी इसमें जान है।
ऋषि मुनि सन्यासी तपसी भी,
गाते है! जपते रहते इनके गुणगान है।
धर्म सीमा के कर्तव्य निष्ठ जवां भी,
कहते है हरदम, यह हमारा शान है।
हिन्दुस्तान की मिट्टी, हिन्दवासी हूँ,
सिर पर भगवा धारण,मेरा पहचान है।
✏श्रवण साहू
रविवार, 12 जुलाई 2015
सावन के महिना
रिमझिम बरसत पानी सावन मा,
चलव मया के गीत गाबो!
सबो तिहार ला धरके आगे,
जूरमिल के तिहार मनाबो!!
खाँद मा बोहे काँवर ला,
बम-बम भोला के भजन गाबो!
मन मा बिसवास,रेंगत दऊड़त,
चलव बाबा नगरिया जाबो
लगते सावन मा हरेली तिहार,
अपन देवी देवता ला मनाबो!
नांगर हसिया टंगिया सजाके,
सुघ्घर गुड़हा चिला खाबो!!
नदिया के तीर पीपर खाल्हे,
झुलना ला फंदाबो!
आेसरी पारी झुलबो झुलाबो,
संग मा ददरिया गाबो!!
रूचुक रूचुक गेड़ी मा चढ़के,
गली खोर ला जनाबो!
अंगना दूवारी परछी डेरौठी
सरी घर ला हमन मताबो!!
नाग पंचमी के दिन सब मिल,
बगीच्चा पार जाबो!
नाग देव के पूजा करके,
भिंभोरा मा दुध चढ़ाबो!!
स्वतंत्रता दिवस के पावन परब,
जम्मो शहीद के सुध लमाबो!
तिरंगा फहराके माथ नवाबो,
भाषन, गीत कविता गाबो!!
भाई-बहिनी के पबरित तिहार,
राखी बहिनी ले बँधवाबो!
हँसी ठिठोली करबो संग मा,
मिठई घलो जमके खाबो!!
अईसन हावय सावन महिना,
जूरमिल सवनाही मनाबो!
भेदभाव ला छोड़के संगी,
संग रहे के किरिया खाबो!!
✏श्रवण साहू
गांव-बरगा थानखम्हरिया
बुधवार, 8 जुलाई 2015
फूलो जैसा जीवन
💐फूल सा जीवन💐
नई सुबह नये कुंज मे,
एक माली का प्यार मिले!
एेसे हो नित नया सवेरा,
जीवन जैसा फूल खिले!!
जीवन के कर्तव्य पथ पर,
एक गुलाब तुम बन कर,
काँटो के बीच रहकर भी,
एक अलग पहचान मिले!!
बिखेर खुशबू रात रानी का,
हर दिन रात महक बिखेर,
दीन हीन को साथ मिले!!
पापों के किचड़ से बचके,
बनके कमल खिला करना,
मानवता का परिभाष मिले!!
मोगरा चम्पा चमेली बैजयन्ती,
बनके सदा महकते रहना,
तुमसे दुनिया को नव श्रृंगार मिले!!
✏श्रवण साहू
गांव-बरगा बेमेतरा (बरगा)
शनिवार, 4 जुलाई 2015
लोक कला एवं साहित्य संस्था - सिरजन
आज मोर मन मा खुशी अपार होगे,
"सिरजन" के बहाना तुहंर सकार होगे!!
०४/०७/२०१५ के लोक कला एवं साहित्य संस्था "सिरजन" के कार्यक्रम ग्राम - अकलवारा (देवकर) मा रहिस जेन मा सबो विद्वत कवि, साहित्यकार, संगीतकार, कला के धनी, अऊ सबो ग्राम वासी उपस्थित रहिस,
वो सबो के सानिध्य मा मोर गुरूजी श्री ईश्वर साहू जी के किरपा ले महूँ ला अपन कविता " झूमरत आगे बरखा देवी" बोले के सुघ्घर अवसर मिलिस, मै अपन गुरूजी श्री ईश्वर साहू जी ला प्रणाम करत हव!!
~श्रवण साहू
गुरुवार, 2 जुलाई 2015
श्रवण साहू
उसे अपना बनाना तो
कल्पना ही रह गयी,
उनका साथ निभाना तो
कल्पना ही रह गयी,
अब उसे पाना तो
कल्पना ही रह गयी,
वो प्रेम का जमाना तो
कल्पना ही रह गयी,
वो खुशी का पल तो
कल्पना ही रह गयी,
वो खट्टे मिठे हलचल तो
कल्पना ही रह गयी,
चन्द पल भी मुस्कुराना तो
कल्पना ही रह गयी,
एक क्षण भी बिताना तो
कल्पना ही रह गयी,
वो प्रेम गीत भी गुनगुना तो,
कल्पना ही रह गयी,
वो मन भर के खाना तो
कल्पना ही रह गयी
हर चीज कल्पना रह गयी मेरे दोस्त,
क्योंकि
कल्पना के बिना तो,
मेरे पूरी जिन्दगी ही
कल्पना ही रह गयी!!!
साथ ही एक शेर,
मन कुण्ठित हो चला है आज,
मेरे सनम् का दीदार हो जाये,
जो अदा उनमे पहले थी,
काश आज वही किरदार हो जाये!!
- श्रवण साहू
बुधवार, 1 जुलाई 2015
मोर दाई के कोरा
!! मोर दाई के कोरा!!
मन मोर नाचेला धरथे,
सुन के वोकर आहट!
अमरित पाये असन लागथे,
सुन के वोकर गुनगुनाहट!
भात रांधत रांधत कोन जनी,
का गीत गुनगुनाथे!
मया मा सनाय भोजन हा,
अऊ अब्बड़ सुहाथे!
कभु का हो जथे वोला,
करे लगथे ठिठोरी!
कभु मया के बरसा करथे,
सुनाके हमला लोरी!
गुस्सा जथे मोर ले ता,
बाहरी क मुठिया मा जमाथे
रो के डरवा देथव तब,
अपनेच हा चुप कराथे
जीयत हावव मेहा संगी,
अपन दाई के निहोरा!
अब्बड़ सुघ्घर लागथे मोला,
मोर दाई के कोरा!!
अब मया मा सनाय हायकु-
ऐ दाई सुन,
मया राखे रहिबे,
बात ला गुन,
✏श्रवण साहू
गांव-बरगा बेमेतरा(छ.ग.)
मोबा. +918085104647
सब नन्दावत हे
नन्दावत संस्कृति के बात
दूरिहागे गा नंदागे ना,
हमर संस्कृति हा बाढ़े पूरा मा बोहागे ना!
ठेठरी, खुरमी, अईरसा नंदागे
नंदागे अंगाकर रोटी,
पताल के चटनी नंदागे
जेमा डारय धनिया अउ चिरपोटी!
खेड़हा, पटवा, भथवा नंदागे
नंदागे तिनपनिया भाजी,
वोकर जघा मा खात हे
मैगी कस आनी बानी खाजी,
कोदो के भात नंदागे
नंदागे कनकी के चीला,
नांव ला बदल के काहत हे
इडली दोसा माई पीला,
बिहनिया के मईहा बासी अउ
नंदागे अदवरी बरी,
नई खाये के ला घलो खावत हे
तभे ये तन होगे लबरी,
कब खाबो अब लो मालपुआ ला,
मन हा करलागे गा..
दूरिहागे गा नंदागे ना,
हमर संस्कृति हा बाढ़े पूरा मा बोहागे ना!
नंदागे छत्तीसगढ़िया के
धोती अऊ कुरता,
वोकर जघा पहिनत हे
टाप अऊ बूरखा,
देखे बर नई मिलय
पिसौरी पाठ के लुगरा,
नई पहिने के ला पहिनत हे
तभे तो माते हे झगरा,
अईसन बात ला देख के सबके
मति छरियागे ना...
दूरिहागे गा नंदागे ना
हमर संस्कृति हा बाढ़े पूरा मा बोहागे ना!
हाय हलो मा जग भुलागे
भुलागे राम राम जय जोहार,
मन कलपत हे श्रवण के
पारत हे गोहार,
बचाबो अपन संस्कृति ला
देके अपन परान,
धीरे धीरे परयास करबो ता
नई होवय छत्तीसगढ़ हा दूसवार,
अईसे बात गुनत गुनत मन हरियागे ना..
दूरिहागे गा नंदागे ना
हमर संस्कृति हा बाढ़े पूरा मा बोहागे ना!!
✏श्रवण कुमार साहू
गांव-बरगा जि.- बेमेतरा(छ.ग.)
मोबा +918085104647
मोर गाँव
मोर गाँव-सब देवता के ठाँव
गांव के मुहाटी मा बईठे हे
सुघ्घर ठाकुर देव,
थोर कुन रकसहू गेस ताहन
महामाया के दर्शन पा गेव!
दू कदम अउ बढ़ जा ता
बईठे हे शंकर भोला,
चनादार बेलपतिया धरले
तभेच मनाबे वोला!
एकेच्च कन भीतरी घुसर जा
राम लखन दोनो भाई हे,
केंवट के डोंगा मा बईठे
संग मा सीता माई हे!
बीच गली मा बईठे हे
पवनसुत महावीरा,
सबके बिगड़ी बनावत हे
हरथे सबके पीरा!
भण्डार बाजू जाबे ता घलो
हावय गा हनुमान,
लक्ष्मण प्रान दाता के
करव मेहा गुणगान!
गांव के दईहान के सुघ्घर
करत हावय रखवारी ,
गोवर्धन पर्वत ला उठाय
खड़े हे मोर गिरधारी!
बुड़ती बाजु बईठे हे गा
पूरा जग के देखन हार,
लक्ष्मी माँ सेवा बजावत हे
शेष मा बईठे हे पालनहार!
हमर गांव के बीच खार मा
सौहत हे बंजारी माई,
सबके मनोकामना पूर्ण करथे
रहिथे सब बर सहाई!
सब देवता मोर गांव मा हे
सबो ला माथ नवावंव,
नानकुन बुद्धि मोर हे
कतेक गुन ला गावंवव!
काबर जाबे तीरथ बरथ
ईंहे बईठे देवता छप्पन कोटी,
चारो धाम मा पईसा झन फेंक
भुखन ला खवादे रोटी!!
भुखन ला खावादे रोटी!!
✏श्रवण साहू
गांव-बरगा बेमेतरा(छ.ग.)
मोबा. +918085104647
साहित्यकार के परिचय
परिचय
- एक साहित्यकार की
कोनो मोला ताना मारथे
हव मैहा नशा मा रहिथंव,
कोनो नोहे मोर बैरी, फेर
सच बात ला कहिथंव,
भेदभाव नई हे मोर कना
छोटे बड़े सब ला चहिथंव,
झुठ मोला सुहावय नही
कपट ले दूरिहा रहिथंव,
जिनगी मा जऊन मिल जय
सुख दुःख सब सहिथंव,
मोर बड़े ग्यानि बिदवान के
रचना के गंगा मा नहिथंव,
सब बहत हे साहित्य गंगा मा
सब के संग महू बहिथंव,
सबे संसार मोर परिवार फेर
नानकुन कुटिया मा रहिथंव,
✏श्रवण साहू
गांव-बरगा बेमेतरा(छ.ग.)
मोबा. +918085104647
दुखिया बेटी के गोहार
दुखिया बेटी के गोहार
मोरो मन होथे महूँ बने पढ़ लेतेंव,
इस्कुल के डेरौठी मा महुँ बने चढ़ लेतेंव!
बिहनिया बेग लटकाय,
जाथे सब संगवारी!
सब साक्षर होवत तेनमा,
एक झन मै अनारी!
सब झन इस्कुल जाके,
किताब ल पढ़त हे!
पढ़ लिख के हूसियार होके,
जिनगी ल गढ़त हे!
मोरो जिनगी ला महूँ बने गढ़ लेतेंव....
मोरो मन होथे महूँ बने पढ़ लेतेंव!!
काबर बनाये मोला विधाता,
तैं टूरी के जात!
सब रऊंदत हे हमर मान ला,
मारथे कोनो लात!
कतको बूता हम करबो तभो,
नई मिलय गुरतूर बात!
भविष्य के रस्ता सोच के,
मोरो मन करलात!
अबतो अपन हक बर महूँ बने लड़ लेतेंव...
मोरो मन होथे महूँ बने पढ़ लेतेंव!!
शुरू ले आखिर मोर जिनगी मा,
बगरे हावे काँटा!
दुनिया के जम्मो दुख हा,
होगे हमरे बाँटा!
पढ़ लिख हूसियार होके,
बने चलातेंव जिनगी!
महू ला पढ़हा दे गा ददा,
करत हावव विनती!
बिकास के रस्ता महूँ बने चढ़ लेतेंव..
मोरो मन होथे महूँ बने पढ़ लेतेंव!!
मोरो मन होथे महूँ बने पढ़ लेतेंव,
इस्कुल के डेरौठी मा महुँ बने चढ़ लेतेंव!!
✏श्रवण साहू
गांव-बरगा बेमेतरा (छ.ग.)
मोबा. +918085104647