°°°°°चल छोड़बो किसानी°°°°°
चुन चुन तिनका पंछी सही
किसान बपरा खोंदरा बनाये।
फुनगी मा चढ़ बेदरा बरोबर
अधिकारी मन डारा हलाये।
ता बन सरिसरप नेता बैरी
निगल चगल अंडा ला खाये।
दुख हे दुहरा तोर चिरईया
काबर तैं सपना ला सजाये।
पानी बादर ले रखे बचाके
अत्याचारी ले कोन बचाये।
कपटी शिकारी लालच देके
दाना डारे तोला भरमाये।
कईसे करबे अऊ का करबे
लगा के फांदा तोला फंसाये।
कोनो तोर हितवा नईहे रे
तोरे मास हा जग ला भाये।
नोच नोच तोरेच देहे ला
कौआ ले गिधवा तक खाये।
चल अब छोड़ किसानी
शहर जाबो खाये कमाये
झन तो उकुल व्याकुल होके
माहुर खाये, फांसी लगाये।
रचना- श्रवण साहू
ग्रा.- बरगा,जि.-बेमेतरा
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