. कलयुग के साधु .
पिंवरा-पिंवरा के कुरता पहीरे,
माथा मा चंदन लगाय हे।
राख-राख के अंग मा बिभूति,
गर मा रूद्राक्ष ओरमाय हे।
रग-रग ले कान मा कुण्डल,
चुँदी ला भारी बढ़हाय हे।
दग-दग ले लकड़ी मा आगी,
बीच खोर मा धुनी रमाय हे।
बम-बम बोलके धुंआ उड़ावत,
गांजा ला परसाद बनाय हे।
गांव-गांव मा किंजरय बाबा,
कईसन जी अलख जगाय हे।
गली-गली मा घुमत फिरत,
मन ला सबो के भरमाय हे।
नर-नारी सब सेवा बजावय,
ढोंगी के चक्कर मा आय हे।
जन-जन परखौ बहुरूपिया ला
जेन खुद ला साधु बताय हे।
सोंच-समझ के दान करहू,
ठग ढोंगिया बहुते छाय हे।
रचना-श्रवण साहू
गांव - बरगा जि.-बेमेतरा
मोबा. - 8085104647
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