शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

गज़ल - श्रवण साहू की कलम से

                   गज़ल

सूखे पड़ते धरातल कराते यह आभास हैं,
दुखिया धरनी भी दीर्घकालीन उपवास हैं।

पापों के बोझ सें सिसकती भुमि भारत,
खिलखिलाती मन आज कितना उदास हैं।

ये क्या? तज कर अपनें रंगीन वस्त्रों कों,
भक्तिमय जोगन सी इनकी लिबास हैं।

  आस्था विभोर मन पुकार रही नित,
आयेंगे जगदीश अवश्य यही विश्वास हैं।

आयें कोई अवतार लेके कृष्ण राम जैसे,
जन्में तुलसी नानक बस यही आस हैं।
  
           रचना - श्रवण साहू
   गांव-बरगा,जि.-बेमेतरा (छ.ग.)


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