हे मनुज!
- श्रवण साहू
हे ब्रह्म वंशज! देवतूल्य तूम्ही,
अशोभनीय समा बैठा गुण,
छोड़ दियो पुरुषार्थ का मार्ग,
बन गया किंकर्तव्यविमुढ़।
उदासीनता कर शीघ्र त्याग,
प्रसन्नचित्त हो,कर कर्म,
राग,द्वेष,काम,क्रोध छोड़,
जीवश्रेष्ठ निभा मानवता धर्म।
मलहीन निश्चिंत निर्मल हंस,
कब हुआ तू घोंघाबसन्त,
न फंस मोह माया प्रपंच में,
अब बनता जा अरिहन्त।
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