सोमवार, 21 सितंबर 2015

तीजा-पोरा तिहार

तीजा पोरा तिहार धीरे धीरे लकठियावत हे,
बहुरिया ले जादा मोर नतनीन हा सतावत हे।
कब आही दाई ममा हा,कब आही दाई ममा हा?
बिहनिया ले संझा, बस ईही गिना गावत हे।
संग मा पारले बिसकुट अऊ सेव केरा लाही,
दिनभर चिल्लाके हमरो मन ला ललचावत हे।
फटफटी के आगु मा बईठ के पिपीप मैं बजांहू,
रहि रहि के अपन महतारी ला जोजियावत हे।
रनिया संग घरबुंदिया बांके संग खेलबो बांटी,
कब के देखे भाई बहिनी ला बने सोरियावत हे।
बड़े ममा  घर जुरमिल जाके शक्तिमान देखबो,
अपने अपन गोठियाके  भारी बेलबेलावत हे।
छोटे ममा के कनबुच्ची खेलई ला सुरता करके,
अब मने मन नतनीन हा मोर कईसे डर्रावत हे।
छोटे ममा के सुरता करके नई जावंव ममा घर,
रोना चालू अऊ अपन महतारी ला मनावत हे।
छोटे ममा ला चेताबे मोर तीर मा झन आही,
अब मया मा महतारी, बेटी ला समझावत हे।
नई खिसयावय ममा हा तैं संसो झन कर, 
तरिया नरवाकुत झन जाबे महतारी बतावत हे।
ठंऊका बेरा मा ममा  आगे मिलगे ओकर आरो,
खुशी मा मोर नतनीन ममा ला देख लजावत हे।
तीजा पोरा तिहार धीरे धीरे लकठियावत हे,
बहुरिया ले जादा मोर नतनीन हा लुकलुकावत हे।
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रचना-श्रवण साहू
गांव-बरगा जि-बेमेतरा

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