खटकत हे मन,
छत्तीसगढ़ लुट गे,
परदेशिया के राज,
करम हरम फुट गे,
रोवत हे आज किसान,
परान ओखर छुट गे,
अंधरा होगे सरकार,
बिसवास हा टुट गे,
होवत अन्याय देखव,
पीरा हा कईसे लहूट गे
छत्तीसगढ़ तो बनगे,
स्वतंत्र होना छुट गे,
अत्याचारी हांसत हे,
सदाचारी हा कुट गे,
ता कईसे मा बनही बात?
एकता अउ गुट मे।।
सिरिफ...
एकता अउ गुट में।।
✏ श्रवण साहू छत्तीसगढ़िया
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