गुरुवार, 23 जुलाई 2015

आज की हालात

मै क्यों रोता हूँ दिन रैन?
मोहे अब आवय नाही चैन।
देख दुष्टों की पाप कर्म,
निशदिन बरसत मेरे नैन..
मैं क्यों रोता हूँ दिन रैन?
असमर्थ है सज्जन अब,
सुगम जीवन बिताने को,
पांव खींचे है दुर्जन उनके,
चला है उन्हें मिटाने को,
धैर्यवान की टूटी धीरता,
वह भी फँस गया जालों में,
न जाने कितने भले आदमी
अकारण गये मुहँ मे कालों के,
बुद्धि जीवी भ्रम में पड़ गए,
आयी आंधी भ्रष्टाचार की
संत पुरुष यातना में पड़े,
जोर पड़ा है अत्याचार की,
कितना और होगा अपराध,
रोक दे भगवन खेलना खेल,
वसुधैव कुटुम्बकम हो जाये
सर्व प्राणी में हो जाये मेल,
इतनी-सी आस 'श्रवण' कर,
अब मुख से न निकसत बैन,
मै क्यों रोता हूँ दिन रैन?
मोहे अब आवय नाही चैन।।
        ✏श्रवण साहू
    गांव-बरगा, थानखम्हरिया

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