कुछ हंसी कुछ गम का पल हूं मैं
न समझ नादान बीता कल हूं मैं
सहज कैद हो जाता हूं पिजरों में
शायद दिलवालों से निर्बल हूं मैं
बनते उजड़ते हैं आशियानें अक्सर
बेअसर तन्हा शज़र अचल हूं मैं
थक जाओ ढूँढते वजह हालात की
सुलझाना मुझे उल्फतों का हल हूं मैं
अल्फाज़ों में राज शब्दों का साज
आशिकों का तराशा गज़ल हूं मैं
- श्रवण साहू
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