बुधवार, 30 दिसंबर 2015

पूस के जड़काला

गली गली खोर खोर,बगरे हे चहूं ओर
धुंधरा हा जाड़ के गा अबड़ के छाये हे

सुरुर सुरुर धुंके,धुंकी तक बिहान ले
रोनिया तापत सरि बेरा हा पहाये हे

कटकट दांत करे,मुश्कुल बात करे
तात तात चाहा हा मन ला बड़ भाये हे

बिहना मंझान चहे,रतिहा संझान घलो
बुढ़ा जवान जमो गथरी मा लदाये हे

हाथ ला सेंके बर,जाड़ ला छेंके बर
घर के डेरवठी मा गोरसी दगाये हे

सबले सुहावन हे,पूस के गा जड़काला
कुनुन कुनुन जाड़ मन ला सुहाये हे।

रचना-  श्रवण साहू 'दुलरवा'
गांव -बरगा, जि.-बेमेतरा
मोबा.-8085104647

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