वीर वही और धीर वही,थी वही बड़ी बलिदानी।
छोटी उम्र पर रण में जूझी थी वही स्वाभिमानी।।
उम्र में हंसी ठिठोली की खेली थी खून की होली।
ब्रिटिसों पर भारी पड़ी थी मनु बाई की टोली।।
पीठ पर पुत्र को बांध हाथ में चमकते तलवार।
गर्जना करती लक्ष्मी रन में घोड़े पर हो सवार।।
लोहा लेकर मार गिराये कितने ही दुष्ट अभिमानी।
वतन के नाम लिख दी थी जिनसे अपनी जवानी।
बता दी जिसने जन को क्रांतिकारी की परिभाषा।
जिनसे आयी थी झांसी को हक पाने की आशा।।
नारी थी नारायणी वे तो दे दी अपनी भी कुर्बानी।
हरदम वंदन हे! लक्ष्मी बाई, झांसी की महारानी।
✒श्रवण साहू
बरगा ,जि.बेमेतरा (छ.ग.)
+९१-८०८५१०४६४७
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