शनिवार, 27 जून 2015

जिनगानी

   .....जिनगानी.....

कांही नईहे जिनगानी मा बईहा देखले अन्तस ला तेंहा निहार के,

सबो जीव के खुन हा लालेच हे,
भले रहय वोहा कशमीर या बिहार के,

रूढ़ी वादी ला छोड़बो  अऊ जिनगी चलाबो,
जम्मो भेदभाव ला निमार के,

बहूत काँटा हे जिनगी के रद्दा मा,
हमन चलबो गा बने निहार के,

कभु गड़गे काँटा तभो, पाव रोकन नही गा,
हमन बढ़ते रहिबो गढ़े कांटा निकार के,

मन मा ठान लेथन अब तो,  खुब
सेवा करबो दुखिया अऊ बिमार के,

नई होवन झगरा अब कखरो संग,
चलव धरबो बात ला सियान के,

नवा सुरुज उगत हे रोजे कुन, मन मा चलव शुरूवात करबो,
धरम के नवा बिहान के,

चलव मया के गोठ गोठियाबो संगवारी,
अपन जम्मो दुख ला बिसार के,

✏ श्रवण साहू ( छत्तीसगढ़िया )
गांव-बरगा बेमेतरा (छत्तीसगढ़)

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