शनिवार, 27 जून 2015

काश ऐसा होता कविता by shravan sahu

     काश एेसा होता!
हिन्दू रोते तो मुस्लिम रोता,
मुस्लिम रोते,हिन्दू रोता,
     काश एेसा होता!

  मिट जाते सब भेदभाव,
पूरी दूनिया परिवार होता,
सब धर्म साथ पूजे जाते
सब मजहब स्वीकार होता,
     काश ऐसा होता!!!

जरूरत न पड़ती अधिकारियों की,
सब जनता का अधिकार होता,
  कब, क्यों, कैसे, क्या, करें
  साथ-साथ विचार होता,
       काश ऐसा होता!

मिट जाती बीच की दूरिंया,
हिन्दू मुस्लिम भाई होता,
दोनो को भाई कहने वाला,
सिक्ख,ईसाईं भी तो होता,
      काश ऐसा होता!

लगती दुनियां फिर से नई,
   यहाँ नया सवेरा होता,
सोने की चिड़िया भारत माँ,
पूरी दूनिया का बसेरा होता,
       काश ऐसा होता!!!

संग मुस्कराते नजर आते,
कोई यहाँ न अकेला रोता,
साथ कदम रखते हम सब,
    मंजिल भी एक होता,
      काश ऐसा होता!

  न कोई जिन्दाबाद और,
न किसी का मुर्दाबाद होता,
स्वर्ग जैसे इस धरती माँ में,
    हर एक आबाद होता,
       काश ऐसा होता!

     रचना-श्रवण साहू
गांव-बरगा जि.-बेमेतरा(छ.ग.)
  मोबा.-+918085104647

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें