📱नेट📱
मोबाईल के जमाना हे,
चलत हे भारी नेट!
एकर चक्कर मा भात घलो,
नइ खवावय भर पेट!
आठोकाल बारो महीना,
आषाण सावन जेठ!
उठत बईठत रेंगत दउड़त,
घंसत घंसत कोलगेट!
नई छोड़न मोबाइल ला,
भले डिपटी मा हो जय लेट!
सब झन लगे हे मोबाईल मा,
गरीब होवय चाहे सेठ!
डोकरा बबा घलो हाथ उठाके,
खोजथे मोबाईल मा नेट!
कभू चढंहत हे अटरिया ता,
कभू चढ़हत हे गेट!
एकर चक्कर मा ले बर पडगे,
मँहगा वाला हेंडसेट!
कतेक गुन ला गावंव गा,
बनगेहे मनखे के गिरनेट!
जय हो तोर नेट!
जय हो तोर नेट!
जय हो तोर नेट!
✏श्रवण साहू
गांव-बरगा बेमेतरा (छ.ग.)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें